प्रदेश में 2016 में जन औषधि केंद्र की शुरुआत डोंगरगढ़ से की गई थी। इस दौरान निजी और सरकारी संस्थानों में कुल 254 जनौषधि केंद्रों का संचालन होता था मगर अब केवल 154 केंद्र ही चल रहे हैं। अस्पतालों तथा स्वास्थ्य केंद्रों में खोले गए 101 केंद्रों को बंद करना पड़ गया है। इस बारे में जनौषधि केंद्रों से जुड़े लोगों का तर्क है कि उन्हें बेहतर रिस्पांस नहीं मिल रहा है। चिकित्सक अभी भी ब्रांडेड दवाओं की पर्ची मरीजों को थमा रहे हैं। अस्पतालों में केंद्र का संचालन करने के लिए उन्हें सुविधाजनक स्थान नहीं दिया गया और ना ही फार्मासिस्ट उपलब्ध कराया गया।
दूसरी ओर जेनेरिक दवाओं का लाभ मरीजों को नहीं मिलने के कारणों में दुकानों में केवल 27 प्रतिशत दवा की उपलब्धता है ,जिसमें सामान्य रुप से उपयोग की जाने वाली बीपी, शुगर, मल्टीविटामिन, पेन किलर, कार्डियक तथा थायराइड की दवा शामिल है। अन्य बीमारियों की दवा के लिए मरीजों को ब्रांडेड कंपनी की दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जनौषधि केंद्र में दवाओं को तीन श्रेणी में बांटकर एमआरपी से छूट के लिए दरें तय की गई हैं।तीन श्रेणी में छूट जेनेरिक दवाओं में पहली श्रेणी में 32 से 50 फीसदी की छूट तय है। इनमें गंभीर बीमारियों की महंगी दवाएं शामिल हैं।
दूसरी श्रेणी में 50 से 70 तथा तीसरी श्रेणी में 70 से 90 फीसदी छूट दी जानी है। मगर दुकानों में खरीददार को छूट दुकानदार अपने मन मुताबिक देता है, जिसकी वजह से भी मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। हालात यह हैं कि कई दवाएं बाहर मेडिकल दुकानों से मिलने वाली दवाओं के रेट से थोड़े कम दाम पर ही मिल रही हैं। जिले में तीन केंद्र बंंद पेंड्रा-गौरेला-मरवाही और बिलासपुर में जिले में 8 जन औषधि केंद्र खोले गए थे। इसमें पेंड्रा मरवाही जिला बनने के बाद यहां 3 सेंटर संचालित हो रहे थे, जबकि बिलासपुर जिले में सिम्स व जिला अस्पताल मिलाकर 5 सेंटर थे।
पहले इन सेंटरों को रेडक्रास के माध्यम से संचालित किया जा रहा था। ठीक से मॉनिटरिंग नहीं होने के कारण मस्तूरी, कोटा व तखतपुर के सेंटरों को बीएमओ के भरोसे संचालित करने का निर्णय लिया गया, परंतु अफसरों की लापरवाही के कारण इन तीनों सेंटरों में ताला लग गया है, जबकि रेडक्रास के भरोसे सिम्स व जिला अस्पताल के जनऔषधि केन्द्र संचालित हो रहे हैं। इसी तरह गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में सिर्फ पेंड्रा ब्लाक में जन औषधि केन्द्र संचालित है।
हर माह 6 करोड़ की दवा खा रहे रायगढ़वासी, जेरेनिक की बिक्री मात्र 20 लाख रायगढ़ के बाशिंदे एक महीने में 6 करोड़ से अधिक की दवा खा रहे हैं। इसमें जेनरिक दवाओं का हिस्सा मात्र 25 लाख है। सस्ती होने के बावजूद मरीज इनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। दवा करोबारियों के अनुसार कमीशन के लालच में डॉक्टर इन्हें लिखते ही नहीं। यह केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी भारतीय जन औषधि परियोजना का जिले में दम तोड़ने का प्रमाण है। जिले में दो साल में लोगों ने 7 लाइसेंस भी ले लिए। इन दवाओं में डॉक्टरों को कमीशन नहीं मिलता है, इसलिए डॉक्टरों ने जेनरिक दवाएं लिखना शुरू ही नहीं किया। उल्टा सांठगांठ या फिर अस्पताल में ही खुले मेडिकल स्टोर पर मौजूद ब्रांडेड दवाएं ही डॉक्टर मरीजों को लिख रहे हैं। फार्मासिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष गब्बर जोशी के मुताबिक बिक्री न होने पर जिले के दो जन औषधि केंद्र बंदी की कगार पर पहुंच चुके हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो हर महीने जिले में 6 करोड़ रुपए से अधिक की ब्रांडेड दवाएं बिक रही हैं। जबकि 4 जन औषधि केंद्रों को मिलाकर सिर्फ 20-25 लाख रुपए की जेनरिक दवाएं बिक पा रही हैं। उल्लेखनीय है कि जिले मे शहर समेत धरमजयगढ, सारंगढ, लैलूंगा व बरमकेला मे जन औषधि केंद्र खोले गए हैं, जिनमे जिनमे सारंगढ व बरमकेला मे दवाओं की मासिक बिक्री करीब 25-30 हजार रुपए है, जबकि लैलूंगा मे शून्य बिक्री के कारण केन्द्र बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। 80 प्रतिशत मरीजों को मिल रही दवाई
80 प्रतिशत मरीजों को मिल रही दवाई धमतरी जिला अस्पताल व परिसर में स्थित जन औषधि केन्द्र से 80 प्रतिशत मरीजों को जेनेरिक मेडिसिन का लाभ मिल रहा है। कम कीमत होने के कारण जेनेरिक मेडिसिन निम्न वर्ग के लिए संजीवनी बन गई है। रायपुर की पंद्रह दुकानें बंद रायपुर जिले में शुरुआती दिनों में तीस जनौषधि केंद्र संचालित किए गए थे मगर अब तक 15 बंद हो चुके हैं। राजधानी में कुछ स्वास्थ्य केंद्रों को विकसित किया गया। इस दौरान स्वास्थ्य विभाग द्वारा उनसे दुकानें छीन ली गई। इनमें गुढ़ियारी, राजातालाब और उरला का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भी शामिल है। राजधानी रायपुर में अभी निजी और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में मिलाकर महावीर नगर, अंवति विहार, फाफाडीह, बूढ़ापारा, चंगोराभाठा, भाठागांव, खोखो पारा, गुढ़ियारी, टाटीबंध, आंबेडकर अस्पताल, जिला अस्पताल पंडरी, मोवा स्वास्थ्य केंद्र में इसका संचालन किया जा रहा है।
आधी कीमत पर भी लोग नहीं खरीद रहे दवा, 5 जन औषधि केन्द्र बंद बिलासपुर में प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना जन औषधि केन्द्र जिले में बंद होने के कगार पर पहुंच गई है। बिलासपुर व पेंड्रा गौरेला मरवाही में खोले गए 8 जन औषधि केन्द्रों में से 5 बंद हो चुके हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बीपीपीआई संस्था से दवा न मिलना, केन्द्रों में बिक्री कम होना व समय से फार्मासिस्ट को वेतन नहीं देना है। बिलासपुर जिले के मस्तूरी, तखतपुर व कोटा के केंद्र बंद हो चुके हैं, जबकि सिम्स व जिला अस्पताल के जनऔषधि केन्द्र रेडक्रास के भरोसे संचालित हो रहे हैं।
योजना के तहत इन केन्द्राें में 600 से अधिक प्रकार की दवाओं का संग्रहण किया जाना था, लेकिन बीपीपीआई संस्था से दवा की सप्लाई नहीं हो पा रही है। इसके चलते जन औषधि केंद्रों में सिर्फ 300 प्रकार की दवा ही उपलब्ध रहती है। वहीं, सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिकांश डाक्टर जेनरिक दवा की बजाए ब्रांडेड दवा लिख रहे हैं, जबकि शासन का सख्त आदेश है कि मरीजों को जेनरिक दवा दिया जाए। ज्यादातर दवाइयां नहीं मिलती गरियाबंद में सरकारी अस्पताल के जन औषधि केंद्र में मरीजों के लिए 300 तरह की दवाएं एवं 56 तरह के सर्जिकल आइटम उपलब्ध होने का दावा किया जाता है, लेकिन इसकी सच्चाई कुछ और बया करती है। यहां ओपीडी में डॉक्टर के द्वारा मरीजों को दिए गए पर्ची के अधिकांश दवाई जन औषधि केंद्र में उपलब्ध नहीं होता है,अंततः मरीज़ो को बाहर मेडिकल स्टोर्स महंगे क़ीमत देकर लेना पड़ता है। कमोबेश यही हाल जिले के सभी जन औषधी केंद्र में है। डॉक्टरों का परहेज गरीब आदमी को पड़ रहा भारी जगदलपुर में डिमरापाल स्थित मेडिकल कॉलेज में भर्ती एक मरीज के परिजनों ने बताया कि वार्ड में पहुंचने वाले डॉक्टर ऐसे दवाई लिख रहे हैं, जो अस्पताल में नहीं है, उन्हें दवाई के लिए वहां से लगभग 7 किमी जगदलपुर जाना पड़ता है।
साथ ही शहर के शासकीय जिला महारानी अस्पताल के वार्ड में भर्ती मरीज के परिजन ने भी कहा कि डॉक्टर ऐसी दवाई लिखते हैं, जो अस्पताल में नहीं है। इससे दवाई के लिए निजी मेडिकल स्टोर में जाना पड़ रहा है। परिजनों ने बताया कि वे डॉक्टर का नाम नहीं बता रहे हैं, क्योंकि बीमार होने पर उसी डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। निजी मेडिकल से लेनी पड़ती है दवाएं महासमुंद में जन सुविधा के लिए अस्पताल में खोले गए जनऔषधि केंद्र में मांग के अनुरूप दवाए सप्लाई नहीं हो रही हैं। इसके कारण मरीजों को सरकारी अस्पताल में लिखी जा रही पर्ची की दवाओं को अधिक दर पर निजी दवा दुकानों से खरीदना पड़ रहा है। अस्पताल प्रबंधन की मानें तो मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं होने के कारण यह स्थिति है। जिला अस्पताल में इलाज कराने पहुंच रहे मरीजों को प्राइवेट मेडिकलों का चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं अधिक दर भी चुकाना पड़ रहा है। बता दें कि मरीजों को आवश्यक दवाएं किफायती दामों पर उपलब्ध हो सकें, इसलिए जन औषधि केंद्रों की स्थापना तो की गई है लेकिन, निजी मेडिकल संचालकों से कतिपय सांठगांठ के चलते मरीजों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।
खपत में भी असर पड़ा राजनांदगांव में जिला अस्पताल के मरीजों की संख्या कम होने के साथ जेनेरिक दवाओं की खपत में भी असर पड़ा है। वर्तमान की डिमांड अनुसार जेनेरिक दवाओं की सप्लाई होने से दवाओं का पर्याप्त स्टॉक भी है, लेकिन पहले के मुकाबले बिक्री और खपत कम है। डॉक्टरों के लिखी पर्ची अनुसार मरीजों को सभी जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हो रही है। पुन: संचालन की तैयारी जनौषधि केंद्रों में दवाओं की सप्लाई नियमित करने का प्रयास किया जा रहा है। केंद्रों की संख्या बढ़ाने के लिए भी लगातार स्वास्थ्य विभाग के समन्वय किया जा रहा है। अनिश वेडितेलवार, डिप्टी मैनेजर मार्केटिंग जनौषधि केंद्र
