महाराजबंध तालाब की दो माह पहले रायपुर स्मार्ट सिटी ने सफाई कराई थी। लेकिन तालाब फिर जलकुंभी से पट गया है। नालों का गंदा पानी आने के कारण तालाब का पानी भी गंदा नजर आने लगा है। यहां किनारे-किनारे बनाए गए घर, कालोनी और कांप्लेक्सों के कारण 54 एकड़ का तालाब सिमटकर करीब 36 एकड़ का रह गया है। लगभग 18 एकड़ तालाब पट गया है।
बचा हुआ तालाब जलकुंभी और नाले के गंदे पानी के कारण अपनी नैसर्गिक सुंदरता खोने लगा है। गर्मी के दिनों में जलीय पौधों और गंदे पानी की वजह से तालाब से बदबू उठने लगती है। ऐसा नहीं है कि कभी तालाब की सुध नहीं ली गई। पूर्व शासनकाल में कैंपा फंड से साढ़े सात करोड़ में तालाब को संवारने की योजना बनाई गई थी। इसके तहत तालाब के गहरीकरण, चारों तरफ पाथवे, आसपास हरियाली और तालाब के किनारों को तटबंध करना शामिल था, ताकि और कब्जे न हो सके।
जानकार बता रहे हैं कि पैसे तो खर्च हो गए, लेकिन काम कागजों में ही रह गया। ऐसा क्यों…इसका ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है। नतीजतन न तो तालाब की सुंदरता ही लौटी और न ही कुरूपता दूर हुई।