महाराष्ट्र का चलता-फिरता माया अस्पताल छत्तीसगढ़ के हजारों मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। लग्जरी बस को अस्पताल का नाम देकर उसी के भीतर एक्स-रे मशीन लगा दी। कान की क्षमता की जांच करने हियरिंग टेस्टिंग सेंटर उसी में खोल दिया। पैथालॉजी लैब और ईसीजी मशीन भी बस के एक हिस्से में लगा दी। चार साल से ये चलता-फिरता अस्पताल लाखों मजदूरों की हेल्थ टेस्टिंग की खानापूर्ति कर फिट का सर्टिफिकेट फैक्ट्री संचालकों को बांट है। फैक्ट्री प्रबंधन वही सर्टिफिकेट हेल्थ एंड सेफ्टी विभाग को जमा कर मजदूरों की जिंदगी जोखिम में डाल रहा है। विभाग ने भी आज तक यह पड़ताल नहीं की कि अस्पताल वजूद में है या नहीं।
लेकिन, सर्टिफिकेट लेकर रिकाॅर्ड में जमा कर रहा है। फैक्ट्री मजदूरों को धड़ल्ले से बांटे जा रहे फिट के सर्टिफिकेट के पीछे सालाना 10 करोड़ से ज्यादा का खेल किए जाने का अनुमान है। धांधली पकड़ी न आए और इसलिए अस्पताल या लैब चलाने के लिए नर्सिंग होम एक्ट के तहत अनुमति तक नहीं ली गई है। बड़ी खामोशी से चल रहे इस पूरे खेल में सरकारी महकमों की भूमिका जांच के घेरे में है। न तो हेल्थ एवं सेफ्टी विभाग कोई कार्रवाई कर रहा और न ही मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की नर्सिंग होम एक्ट की जांच करने वाली विंग माया अस्पताल की जांच कर रही है। हालांकि प्रदेश में चार साल पहले नर्सिंग होम एक्ट लागू हो चुका है। उसके बाद अस्पताल, नर्सिंग होम तो दूर क्लीनिक तक खोलने के लिए नर्सिंग होम एक्ट से अनुमति जरूरी है। पड़ताल में पता चला है कि माया अस्पताल केवल रायपुर ही नहीं, बिलासपुर, कोरबा और रायगढ़ सहित कई छोटे शहरों की फैक्ट्रियों के सैकड़ों मजदूरों की रोज हेल्थ की जांच कर रहा है। इसके बावजूद न तो स्वास्थ्य विभाग और न ही हेल्थ एंड सेफ्टी विभाग की ओर से आपत्ति की गई और न ही ये जानने की कोशिश की गई कि ये अस्पताल अस्तित्व में है या नहीं? इस पूरे खेल में स्वास्थ्य विभाग के साथ हेल्थ एवं सेफ्टी विभाग की भूमिका जांच के घेरे में है।
अस्पताल या क्लीनिक खोलने के लिए ये मापदंड जरूरी
दरअसल, नर्सिंग होम एक्ट से मंजूरी तभी मिलती है, जब अस्पताल या क्लीनिक खोलने के सारे मापदंड पूरे हों। नर्सिंग होम एक्ट और पीएडंडीटी एक्ट के तहत एक्स-रे मशीन ऐसे कमरे में होने चाहिए, जिसकी दीवारें रेडिएशन फ्री हों, ताकि उससे निकलने वाली किरणों से किसी को कोई साइड इफेक्ट न हो। हेयरिंग टेस्ट भी साउंड प्रूफ कमरे में होना चाहिए, ताकि मजदूरों के सुनने की क्षमता काे सही तरीके से मापा जा सके। माया अस्पताल बस में न सिर्फ एक्स-रे कर रहा है बल्कि हेयरिंग यानी कान का टेस्ट भी कर रहा है। बस में एक्स-रे मशीन से निकलने वाले रेडिएशन से बचाव के कोई इंतजाम ही नहीं है।
ऐसे चल रही हेल्थ टेस्टिंग में 10 करोड़ की कमाई का खेल
प्रदेश में ढाई हजार छोटे-बड़े उद्योग हैं। इनमें 20 लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं। अति लघु उद्योग की संख्या दो लाख से ज्यादा है। इन उद्योगों में लाखों श्रमिक कार्यरत हैं। काम करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उद्योग संचालकों की है। हेल्थ एवं सेफ्टी एक्ट लागू होने के बाद से हर साल फैक्ट्रियों और उद्योग संचालकों को मजदूरों के स्वास्थ्य की जांच करवानी होती है। माया अस्पताल की एक गाड़ी रोज औसतन 200 से ज्यादा मजदूरों के स्वास्थ्य की जांच कर रही है। इस तरह एक ही गाड़ी का स्टाफ एक महीने में 6 लाख और साल में करीब 72 लाख टेस्ट कर रहा है। माया अस्पताल की एक दर्जन चलते फिरते लैब चल रहे हैं। इस हिसाब से करीब 10 करोड़ से ज्यादा का खेल किया जा रहा है।
करोड़ों की कमाई का चक्कर
महाराष्ट्र का माया अस्पताल हर साल 50 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर रहा है। उसे अस्पताल खोलने के लिए न तो बिल्डिंग की जरूरत पड़ी और न ही नर्सिंग होम एक्ट का पालन करने के लिए किसी तरह के मापदंडों को पूरा करना पड़ा। लग्जरी बस में छोटे-छोटे केबिन बनाकर सबकुछ उसी में फिट कर दिया। अब शहर के दूसरे नर्सिंग होम और पैथालॉजी सेंटरों से कम पैसे लेकर मजदूरों को हेल्थ सर्टिफिकेट बांट रहा है।
फैक्ट्री के अंदर ही कैंप लगाकर जांच
मीडिया की छानबीन में खुलासा हुआ कि अस्पताल प्रबंधन किसी भी फैक्ट्री से टाइअप करने के बाद दिन और समय तय करता है। उसके बाद निर्धारित तारीख और समय में बस सीधे फैक्ट्री में पहुंचकर मजूदरों के हेल्थ की जांच करती है। सुबह से शाम तक एक दिन में 100 से ज्यादा लोगों के टेस्ट की खानापूर्ति कर ली जाती है। हफ्ते 10 दिन के भीतर सर्टिफिकेट सीधे हेल्थ एवं सेफ्टी विभाग की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाता है।
इसलिए जरूरी… मजदूरों को हेल्थ सर्टिफिकेट
फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को कई तरह की बीमारी उनके काम की वजह से हो जाती है। ऐसी फैक्ट्री जहां सिलिका बनता है, वहां काम करने वालों को सिलिकोसिस की बीमारी होती है। पेंट फैक्ट्री के मजदूरों को फेफड़े के इंफेक्शन का खतरा रहता है। मैग्नीज का उपयोग करने वाली फैक्ट्रियों में कई तरह की डिजीज हो सकती है।
मशीनों के तेज साउंड की वजह से मजदूरों के सुनने की क्षमता कम हो सकती है। इस वजह से हेल्थ एवं सेफ्टी विभाग के तहत हर फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की साल में एक बार लंग्स, किडनी और कान की जांच करना जरूरी है। जांच के जरिए ये पता लगाना है कि काम की वजह से उनके शरीर में कोई गलत असर तो नहीं पड़ रहा है। जांच करवाने के बाद फैक्ट्री प्रबंधन को रिपोर्ट हेल्थ एवं सेफ्टी डिपार्टमेंट में जमा करना पड़ता है। विभाग एक-एक मजदूरों का हेल्थ रिकार्ड रखता है।
ये अफसर रोक सकते हैं गड़बड़ी…लेकिन पढि़ए इनके जवाब
अस्पताल या लैब का संचालन करने के लिए नर्सिंग होम एक्ट के तहत मंजूरी जरूरी है। अगर कहीं ऐसी गड़बड़ी चल रही है, तो लिखित शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
शैलेष ठाकुर, नर्सिंग होम एक्ट, जिला प्रभारी
ये हमारा काम नहीं है। हम तो केवल मजदूरों के स्वास्थ्य का सर्टिफिकेट चेक करते हैं। अस्पताल या लैब मान्यता प्राप्त है या नहीं? ये देखना हमारी जिम्मेदारी नहीं है।
-रज्जू भोई, डिप्टी डायरेक्टर, हेल्थ एंड सेफ्टी
माया अस्पताल के संचालक डाॅ. श्याम देवतले का कहना है कि हमें नर्सिंग होम की जरूरत नहीं है। हमारा नागपुर में रजिस्ट्रेशन है।