शबरी सेवा संस्थान के सचिव सुरेंद्र साहू ने हसदेव के जंगल को बचाने छेड़ा अभियान
दुर्ग(अमुल्य भारत/अशोक अग्रवाल) छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान लखनपुर जिला सरगुजा के प्रदेश सचिव सुरेन्द्र साहू ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को पत्र लिखकर हसदेव जगंल को बचाने का आह्वान किया। सुरेन्द्र साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव-विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का जल संग्रहण क्षेत्र है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के हजारों नागरिकों के साथ हजारों एकड़ खेतो की प्यास बुझाता है. यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध वन है, जो मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के जंगलो को झारखण्ड के पलामू के जंगलो से जोड़ता है. यह हाथी जैसे 25 अन्य महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का वन क्षेत्र है।
महोदय ! वर्ष 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो (No – Go) क्षेत्र घोषित किया था. 2014 में कॉर्पोरेट के दवाब में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति (FAC) ने खनन नहीं करने के निर्णय के विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे वर्ष 2014 में ही ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने खनन की अनुमति को निरस्त भी कर दिया था। हाल ही में भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई जिसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध, जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है. इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद हैं. वर्तमान संचालित परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए शेष सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल नो गो घोषित किया जाये. इस रिपोर्ट में एक चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव और हाथी संघर्ष को संभालना लगभग नामुमकिन होगा. यह स्थिति प्रदेश में देखने मंल भी आ रहे है. आए दिन हाथियों के दल रिहायशी इलाकों में घुसने लगे है. जिससे भारी मात्रा में जान-माल की हानि भी हो रही है।
सुरेन्द्र साहू ने कहा है कि दुखद है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र की समृद्धत्ता, पर्यावरणीय महत्व और उसकी आवश्यकता को समझते हुए भी केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर निजी कम्पनी को अंतिम वन स्वीकृति दी गई जिससे लगभग 6 हजार एकड़ क्षेत्रफल में 4 लाख 50 हजार पेड़ों को काटा जाना तय हुआ है, जिसे लेकर वनों को चिंहित भी किया जा चुका है और जंगल के कुछ हिस्सों में कटाई शुरु भी कर दी गई है.जबकि हसदेव अरण्य को बचाने के लिए एक दशक से चल रहे आन्दोलन में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को हमेशा नज़रंदाज़ किया गया है. वहीं हसदेव अरण्य संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र है. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को अपने जल,जंगल, जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का संवैधानिक अधिकार है। हसदेव जंगल काटने से केवल छत्तीसगढ़ ही प्रभावित नहीं होगा इससे पुरे मानव समाज का लिए विनाश होगा। आज विश्व पर्यावरण सन्तुलन के लिए वृक्ष रोपण कर रहा है, वहीँ हमारे देश में विकास के नाम पर जंगल के जंगल काटे जा रहे हैं। हम सभी सरगुजा के निवासी हैं। और यहां पर पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहे हैं।
सुरेन्द्र साहू ने कहा कि छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र के जंगल को काटने पर रोक लगाने का कृपा करें। इस कार्य के लिए श्रीमान का सदा देश के नागरिक, जीव जंतु, पशु पक्षी सभी आभारी रहेगे सुरेन्द्र साहू ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल से मांग किया है कि सहदेव जंगल को बचाने कि कृपा करे। सुरेन्द्र साहू ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र की प्रतिलिपि राष्ट्रपति महोदय सरकार और NGT, नई दिल्ली को भी भेजा है। जिससे कि हसदेव जगंल में लगे वृक्ष को बचाया जा सके।