आजमगढ़ : कारगिल विजय दिवस के 23 वर्ष भले ही हो गए हों, लेकिन देश की आन, बान और शान की रक्षा के लिए जांबाजों के जज्बे की कहानी सुन आज भी राेंगेटे खड़े हो जाते हैं। कारगिल की पहाड़ी पर लंबी लड़ाई के बाद मिली जीत में सगड़ी तहसील के नगवां एवं वर्तमान में शहर के लछिरामपुर मोहल्ले में रह रहे 212 राकेट रेजीमेंट में शामिल सूबेदार (सेवानिवृत्त) रघुनाथ पांडेय ने भी अपनी टीम के साथ अहम भूमिका निभाई थी।
उन्होंने ‘media को बताया कि युद्ध के दौरान उनके सामने ही एक साथी बलिदान हो गया और छह घायल हो गए। 13,202 फीट की ऊंचाई पर एक सप्ताह तक भूखे रह गए। बावजूद इसके फतह हासिल करने के जज्बे से दुश्मनों से मोर्चा लेते रहे और कारगिल पहाड़ी पर विजय का पताका फहराया।
सूबेदार (सेवानिवृत्त) रघुनाथ पांडेय ने बताया कि द्रास सेक्टर के पोस्टों पर दुश्मनों ने कब्जा कर लिया था, जिसका भारतीय सेना ने माकूल जवाब दिया। 200 फौजियों की टीम के साथ आगे बढ़ रहे थे, क्योंकि हर हाल में कारगिल पहाड़ी तक पहुंचना था।
इसलिए अपनी सेना के जवानों को निर्देश देते हुए खुद आगे-आगे तोप लेकर बढ़ रहे थे। हालात यह हुए कि दुश्मनों के दांत खट्टे हो गए और वे भाग खड़े हुए। इसके बाद 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पूरी कारगिल पहाड़ी पर कब्जा जमाकर तिरंगा फहराया था।
चाचा का बलिदान, पिता की बहादुरी से सीख ले बेटे ने सरहद की रक्षा की ठानी
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के कई रणबांकुरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश का मान बनाए रखा और दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। देश उन बलिदानियों का हमेशा ऋणी रहेगा। वीर जवानों की धरती के रूप में ख्यात गाजीपुर के छह जवानों ने युद्ध में देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।
छह बलिदानी परिवारों की अगली पीढ़ी की फौज से टूटते रिश्ते को बलिदानी इश्तियाक अहमद के भतीजे इंतजार खान ने जोड़ने का काम किया है। चाचा के बलिदान और पिता की बहादुरी को देख इंतजार ने सरहद की रक्षा के लिए सेना की वर्दी पहन ली है। जिस ग्रेनेडियर में पिता व चाचा थे, वह भी उसे में है। इस परिवार का फौज से तीसरी पीढ़ी का रिश्ता जुड़ गया है।