एमपी के उर्जाधानी सिंगरौली जिले में जान जोखिम में डालकर स्कूली बच्चे, ‘स्कूल चलें हम’, नारे को बुलंद कर रहें हैं. इनके जज्बे को सलाम करने का हर किसी का दिल चाहेगा.
हाथों में चप्पल और कंधे पर बैग लिए ये बच्चे पढ़ने के लिए रोजाना इसी तरह से स्कूल जाते हैं. इनके अभिभावकों को रोज इनके लौटने तक डर बना रहता है कि उनका बच्चा सही सलामत घर वापस लौट आए.
ऐसा नहीं कि इन बच्चों के पंचायत में स्कूल नहीं है, लेकिन जो स्कूल है वो सिर्फ प्राथमिक स्कूल है, माध्यमिक या हाई स्कूल के बच्चे बगल की पंचायत में बने स्कूल में पढ़ने जाते हैं, लेकिन इस बीच उन्हें सकरी नदी को रोजाना पार करना पड़ता है.
तस्वीर जिले के हर्रैया गांव की है. जहां राजा सरई, हर्रैया गांव के कई बच्चे रोजाना जान जोखिम में डालकर स्कूल में जाकर पढ़ाई करने के लिए विवश हैं.
आपने ऐसी ही कहानी देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पढ़ी और सुनी होगी. जो गंगा पार कर पढ़ाई करने के लिए जाया करते थे, लेकिन वो दौर दूसरा था. आज जब हम विकास की बात करते हैं और हालात ऐसे हैं कि आपके हमारे बच्चों को नदी पार कर रोजाना स्कूल जाना पड़े या गांव की पंचायत में बने स्कूल तक पहुंचने में साधन न हो तो ऐसा विकास किस काम का
वहीं, इस मामले पर हर्रैया गांव के सरकारी स्कूल की हेडमास्टर विजय लक्ष्मी सिंह ने कहा रोजाना बच्चे नदी पार कर स्कूल आते जाते हैं. इस मामले को लेकर कलेक्टर से लेकर जनप्रतिनिधियों तक इसकी जानकारी दी गई है, लेकिन आज तक इस मामले में न तो यहां के जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहें है और न ही जिला प्रशासन.
अब देखना ये है कि जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने वाले छात्रों के कठिन रास्ते को सुगम बनाने के लिए सकरी नदी पर प्रशासन कब तक पुल का निर्माण करवाता है ताकि इन नौनिहालों के लिए सुरक्षित रास्ते का इंतजाम हो सके और इनके अभिभावक स्कूल भेजने के बाद बेफ्रिक होकर रह सके.