इस साल के अंत में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव होने हैं जो कई दिग्गज नेताओं को खुद को साबित करने का आखिरी मौका हो सकता है.
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. सभी पार्टियां आने वाली चुनौती के लिए तैयार हैं. चुनावी राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी की सीधी टक्कर है. इस बार के विधानसभा चुनाव कई दिग्गज नेताओं के लिए खुद को साबित करने का आखिरी मौका है. मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह अपने राजनीति करियर की सबसे अहम लड़ाई लड़ने जा रहे हैं तो राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे भी इस लिस्ट में हैं. मध्य प्रदेश में में चार कमान संभाल चुके सीएम शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को भी खुद को साबित करना है.
सीएम शिवराज सिंह चौहान
वहीं बीजेपी में सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए भी बड़ा इम्तिहान है. चार बार सीएम रह चुके शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने इस बार तीसरी लिस्ट में टिकट देकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. अब देखना ये है कि यदि पार्टी राज्य में जीत हासिल करती भी है तो क्या शिवराज सिंह चौहान को ही सीएम बनाएगी? शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं लेकिन पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस ने उनसे सत्ता छीन लगातार चौथी बार सीएम बनने से रोक दिया. हालांकि 3 बार से लगातार सीएम बन रहे शिवराज ने सत्ता विरोधी लहर का बाखूबी सामना किया था. कांग्रेस और बीजेपी में सीटों का अंतर ज्यादा नहीं था. सरकार भले ही कमलनाथ ने बना ली हो लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को वो रोक नहीं पाए. कांग्रेस टूट गई और सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. शिवराज को फिर मुख्यमंत्री बन गए.
दरअसल साल 2018 के चुनाव में बीजेपी की सीटें कम आने का एक कारण भ्रष्टाचार के आरोप भी थे. व्यापमं घोटाले की आग से शिवराज सरकार बुरी तरह झुलसी थी. लेकिन कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद शिवराज जब सीएम बने तो भ्रष्टाचार के आरोपों में कुछ खास नहीं कर पाए हैं. दूसरी ओर इस बार फिर उनको सत्ता विरोधी लहर का सामना करना है. कुछ दिन पहले हुई एक रैली में पीएम मोदी के भाषण से भी शिवराज को लेकर पार्टी के अंदर क्या सोच है, इसका संकेत मिलता है.
पूर्व सीएम कमलनाथ
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल रहे कमलनाथ ने पिछले चुनाव यानी 2018 में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक कर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. हालांकि पार्टी शुरुआती प्रचार के दौरान दिग्विजय सिंह को प्रोजेक्ट करने से झिझक रही थी. जो कांग्रेस से दो बार सीएम रह चुके हैं. जानकारों की मानें तो दिग्विजय के विवादित बयान भी उनके खिलाफ गया.
इस दौरान पार्टी के चेहरे के रूप में खुद को प्रोजेक्ट कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिग्विजय सिंह से सहमत और खुश नहीं थे. जिसके बाद कमलनाथ ने हस्तक्षेप किया और तीसरे विकल्प के रूप में दिग्विजय सिंह ने उन्हें स्वीकार कर लिया. कलमनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस में एकता लाने में कामयाब हुए, जो पार्टी के लिए बहुत जरूरी थी. नतीजा ये रहा कि कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली 15 साल की बीजेपी सरकार को हराने में कामयाब रही.
कांग्रेस के डेढ़ साल के कार्यकाल के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया दल बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए. ऐसे में मध्य प्रदेश की सत्ता कांग्रेस के हाथ से फिसलकर बीजेपी के हाथों में चली गई. अब पार्टी ये दावा कर रही है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस मजबूत बनी हुई है. जैसा कि स्थानीय निकाय चुनावों में भी स्पष्ट होता है. मौजूदा स्थिति को देखें तो कांग्रेस कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को बड़ा चेहरा बनाकर पेश कर रही है. साथ ही दोनों ही नेताओं के लिए इस बार अपनी साख भी मजबूत करने का सवाल है.
पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक हैं. दो बार मध्य प्रदेश के सीएम रह चुके दिग्विजय सिंह राजनीति में राहुल गांधी के गुरु की भी भूमिका निभा चुके हैं. लेकिन बीते कुछ सालों से वो कांग्रेस आलाकमान के दुलारे नहीं रह गए हैं. बीते विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने खुद की उपेक्षा होने की शिकायत भी की थी. विवादित बयानों की वजह से कई बार पार्टी की किरकिरी करा चुके दिग्विजय सिंह के लिए ये चुनाव अहम साबित होने जा रहे हैं. कांग्रेस पहले ही कमलनाथ को प्रदेश की कमान दे चुकी है. जिस तरह से पार्टी के युवा नेता आगे की आने की राह देख रहे हैं, इन हालात में दिग्विजय सिंह को इस बार खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती है.
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत
राजस्थान में अशोक गहलोत ने अपने राजनीतिक कौशल और सार्वजनिक समर्थन के माध्यम से एक और मौका अर्जित कर लिया है. उन्होंने साल 2020 में सचिन पायलट के साथ हुई खींचतान के बीच अपनी समझदारी से सत्ता हाथ से नहीं जाने दिया है. लेकिन युवा चेहरे के रूप में सचिन पायलट भी कांग्रेस आलाकमान के चहेते हैं.
अशोक गहलोत के लिए पार्टी को चुनाव जिताने के साथ ही सीएम कुर्सी पर बने रहना भी एक बड़ी चुनौती है. हालांकि, अशोक गहलोत अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. उन्होंने कई कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं जिनक वो चुनावी मुद्दा बना रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने महत्वपूर्ण जिला पुनर्गठन की घोषणा भी की है और अब जाति जनगणना कराने की योजना भी बना रहे हैं. गहलोत पिछले एक साल से ग्रामीण ओलंपिक, बजट अभियान, कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन पर बैठकें करके मतदाताओं से सीधे जुड़ने का भरसक प्रयास कर रहे हैं.
पूर्व सीएम वसुंधरा राजे
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी इस बार पार्टी को जिताने में अहम भूमिका निभाने होगी. अभी तक मिल रहे संकेतों की मानें तो बीजेपी इस बार किसी भी को सीएम के चेहरे के तौर पेश नहीं कर रही है. इसके साथ ही बीजेपी की ओर से जारी उम्मीदवारों की लिस्ट में वसुंधरा राजे के दो खास सहयोगियों के भी नाम गायब हैं. हालांकि प्रतिक्रिया के तौर पर वसुंधरा राजे ने सभी उम्मीदवारों को शुभकामनाएं दी हैं. उधर पार्टी की ओर से भी साफ इशारा कर दिया है कि इस बार किसी का भी दबाव नहीं चलेगा. दरअसल राजस्थान बीजेपी में भी कई नेता खुद को मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार मानते हैं इसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्य हैं. बीजेपी इस राज्य में कई खेमों में बंटी है. पार्टी नहीं चाहती है कि किसी को चेहरा बनाकर सिर फुटौवल शुरू करा दी जाए. मौजूदा परिस्थितियों में वसुंधरा राजे को पार्टी को जिताने में अहम भूमिका निभानी होगी.
छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमन सिंह
तीन कार्यकाल और 15 सालों तक छत्तीसगढ़ के सीएम रहे रमन सिंह इस बार बीजेपी के सीएम फेस होंगे या नहीं, इस पर संशय बना हुआ है. इस बार खुद को साबित करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन गया है. छत्तीसगढ़ में साल 2018 में जब विधानसभा चुनाव कराए गए तो बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 68 विधायक चुने गए. सीएम भूपेश बघेल ने कुछ समय पहले तंज मारते हुए कहा था कि रमन सिंह को अपनी टिकट की चिंता है. इस पर जवाब देते हुए रमन सिंह ने कहा था कि वो मेरी जगह अपनी चिंता करें. रमन सिंह ने कहा कि भूपेश बघेल जी की परेशानी उस दिन से शुरू हुई है जिस दिन बीजेपी ने 21 उम्मीदवारों की सूची जारी की और उसमें विजय बघेल का नाम आया जिन्होंने सीएम बघेल को हराया था.
आयुर्वेद के डॉक्टर रमन सिंह की खास बात ये है कि उनके अंदर धैर्य की कमी नहीं है. लेकिन पार्टी आलाकमान छत्तीसगढ़ के सामाजिक समीकरणों को देखते हुए नए विकल्पों की भी तलाश कर रहा है. अभी तक पार्टी की ओर से इस बात का संकेत नहीं दिया गया है कि रमन सिंह ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे. हालांकि उनको टिकट जरूर दिया गया है. सीएम भूपेश बघेल ओबीसी समुदाय से आते हैं. बीजेपी ने भी प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी से आने वाले अरुण साव को काफी पहले से बना दिया था. इसके साथ ही बीजेपी ने 31 ओबीसी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जो एक तरह जातीय राजनीति को लेकर सटीक दांव है. मौजूदा समीकरणों के बीच जब कांग्रेस जातीय जनगणना कराने का वादा कर रही है, उस लिहाज से रमन सिंह इसमें फिट नहीं बैठते हैं.
किस राज्य में बन रही किसकी सरकार?
एबीपी न्यूज द्वारा करवाया गए सी वोटर्स के सर्वे पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में सर्वे के मुताबिक इस बार 230 सीटों में से कांग्रेस को 113-125 सीटें, बीजेपी को 104-116, बसपा को 0-2 जबकि अन्य के खाते में 0-3 सीटें आ सकती हैं. वहीं राजस्थान में बीजेपी इस बार बाजी मारती हुई दिखाई दे रही है. सर्वे के मुताबिक इस बार राजस्थान की 200 सीटों में से कांग्रेस को 59-69 सीटें, बीजेपी को 127-137 जबकि अन्य के खाते में 2-6 सीटें आ सकती हैं. इसके अलावा छत्तीगढ़ के ओपीनियन पोल पर नजर डालें तो राज्य में कांग्रेस को 45 से 51 सीटें मिल सकती हैं. बीजेपी के खाते में 39 से 45 सीटें आ सकती हैं. वहीं अन्य के खाते में शून्य से दो सीटें आ सकती हैं. राज्य में विधानसभा की कुल सीटें 90 और बहुमत का आंकड़ा 46 है. छत्तीसगढ़ में मौजूदा कांग्रेस सरकार की कमान भूपेश बघेल संभाल रहे हैं.
किन राज्यों में कब और कितने चरणों में होंगे चुनाव?
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में मतदान और परिणामों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ और मिजोरम में 7 नवंबर से चुनाव हैं. छत्तीसगढ़ में दो फेज 7 और 17 नवंबर को मतदान होंगे. मध्य प्रदेश में मतदान 17 नवंबर, तेलंगाना में 23 और 30 नवंबर और राजस्थान में 25 नवंबर को मतदान होगा. सभी राज्यों की मतगणना 3 दिसंबर को होगी. इससे पहले राजस्थान में मतदान की तारीख 23 नवंबर तय की गई थी लेकिन इस दिन देवउठनी ग्यारस के चलते कई संगठनों ने इसकी तारीख बदलने की बात कही. जिसके बाद चुनाव आयोग ने राजस्थान में 23 की जगह 25 नवंबर को मतदान का ऐलान किया. आयोग ने इस बार मतदान और प्रचार का गैप कम रखा है. मध्य प्रदेश में विधानसभा की जहां 230 सीटें हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटें हैं. राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं, जबकि तेलंगाना में 119 और मिजोरम में 40 सीटें हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछली बार कांग्रेस की सरकार आई थी. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद 2020 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई. सिंधिया 28 कांग्रेस विधायक और अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए.