चुनाव सुधार करने के लिए हस्तक्षेप करने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने सुप्रीम कोर्ट से लगाया गोहार
दुर्ग। छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एड. राजकुमार गुप्त ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर भारत निर्वाचन आयोग पर प्रत्याशियों के साथ भेदभाव और पक्षपात करने की शिकायत किया है और चुनाव को निष्पक्ष बनाने और सभी प्रत्याशियों को जीतने के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए चुनाव सुधार करने में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
एड. राजकुमार गुप्त ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच की ओर से अभ्यर्थी होने के अपने अनुभव से अवगत कराया है और कहा है संविधान के प्रावधान के अनुसार चुनाव में भाग लेने वाले सभी प्रत्याशियों से निष्पक्ष और समान व्यवहार किया जाना चाहिए ताकि सभी को चुनाव जीतने के लिए समान अवसर मिले किंतु भारत निर्वाचन आयोग ने ऐसे नियम और व्यवस्था बनाए हैं जिसके कारण सिर्फ राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रत्याशी को ही सफलता मिलती है पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के एवं स्वतंत्र रूप से चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशियों के सफल होने की संभावना लगभग क्षीण है।
मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट को लिखे पत्र में कहा है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिंह आरक्षित किया गया है। जिसका अनुचित लाभ उठाया जाता है और पूरे साल भर इसका प्रचार किया जाता है जिसका लाभ चुनाव में इन दलों के अधिकृत प्रत्याशी को प्राप्त होता है। जबकि पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के और स्वतंत्र प्रत्याशियों को चुनाव के समय मतदान की तिथि से लगभग 14 दिन पहले चुनाव चिंह का आबंटन किया जाता है जिसे छपाकर मतदाताओं तक पहुंचाना लगभग असम्भव है ऐसा भारत निर्वाचन आयोग के 1968 के चुनाव चिह्न के आरक्षण और आबंटन आदेश के कारण हुआ है।
भारत निर्वाचन आयोग के पक्षपात का अन्य उदाहरण देते हुए मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पत्र में लिखा है कि बैलेट यूनिट में क्रम में सबसे पहले राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त दलों के उसके बाद राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशी के नाम को स्थान दिया जाता है तीसरे क्रम में पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल और अंतिम क्रम में स्वतंत्र प्रत्याशियों के नामों को रखा जाता है इसके कारण मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशीयों को चुनाव प्रचार करने में सुविधा और लाभ प्राप्त होता है जबकि बिना भेदभाव के नाम बैलेट यूनिट में अल्फा बीटा के आधार पर क्रम में रखा जाना चाहिए।
इसी प्रकार चुनाव में खर्च के मामले में भी भारत निर्वाचन आयोग पक्षपाती है चुनाव में भाग लेने वाले प्रत्याशियों के लिए तो खर्च करने की सीमा समान रूप से निर्धारित किया जाता है किन्तु राजनीतिक दलों द्वारा आरक्षित चुनाव चिंहो के प्रचार में किये जाने वाले करोड़ों के खर्चे को अलग रखा जाता है। जबकि इसका लाभ उन दलों के अधिकृत प्रत्याशी को प्राप्त होता है और जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को प्रसारण करने निशुल्क सुविधा उपलब्ध कराई जाती है जबकि पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के और स्वतंत्र प्रत्याशियों को ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं होती।
इनकम टैक्स कानून में राजनीतिक दलों को दान या चंदा देने वाले को टैक्स में छूट दी जाती है जबकि स्वतंत्र प्रत्याशियों को दान या चंदा देने वाले को ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार राजनीतिक दलों को प्राप्त धन को आयकर के दायरे से बाहर रखा गया है, अपारदर्शी इलेक्शन बांड भी प्रमुख रूप से मान्यता प्राप्त दलों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए विशेष रूप से सत्ता वाले दलों को लागू किया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही खारिज किया है।
एड. राजकुमार गुप्त ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि 1951 में लोकसभा के 489 सीटों के लिए हुए चुनाव में 37 स्वतंत्र प्रत्याशियों ने जीत दर्ज किया था जबकि 2019 में लोकसभा के 545 सीटों के लिए हुए चुनाव में जीतने वाले स्वतंत्र प्रत्याशियों की संख्या मात्र 4 ही रह गई है इसके लिए भारत निर्वाचन आयोग जिम्मेदार है।
मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संविधान के अनुच्छेद 329 के अनुसार दखल देने का आग्रह माननीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से किया है।