अंबिकापुर । राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा कि आयोग में अनुसूचित जनजाति से संबंधित 600 मामले कई वषोर् से लंबित हैं। इन सभी मामलों की फाइल नए सिरे से निकालकर उसकी सुनवाई की जा रही है। एक- एक प्रकरण की जांच की जा रही है। आयोग के अध्यक्ष बनने के बाद मैं लगातार कार्यालय में अधिकारी कर्मचारियों के साथ बैठ रहा हूं इस कारण लोगों का विश्वास बढ़ा है। कुछ माह में ही 100 से अधिक मामले आए हैं। सभी मामलों की एक-एक कर सुनवाई शुरू की गई है।उन्होंने कहा कि फर्जी जाति प्रमाण से नौकरी, भूमि संबंधी विवाद के कई मामले लंबित हैं। सभी की सुनवाई की जा रही है।पांच साल से लंबित मामलों की भी फाइल निकलवाई गई है। सभी मामलों की प्रकृति की जांच की जा रही है । यह भी देखा जा रहा है कि ये मामले मामले सुनवाई योग्य हैं या नहीं। पूरे प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित मामले अखबारों के जरिए सामने आने पर आयोग स्वत संज्ञान लेकर कार्रवाई भी शुरू कर चुका है। आयोग के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह अपने निवास पर midiya से चर्चा कर रहे थे।
अजजा आयोग के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने आगे कहा कि आयोग में वषोर् से लंबित मामलों का निराकरण मैं स्वयं राजधानी के कार्यालय में बैठकर कर रहा हूं। आयोग के सदस्य गण भी काफी सक्रियता से मामलों का निराकरण करने में लगे हैं। नए मामले भी आ रहे हैं। लगातार कार्यालय में बैठने और बैठने से लोगों में भरोसा भी जगा है।समय पर सुनवाई हो रही है तो आवेदनों की संख्या भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि बालोद जिले में मेरे दौरे के दौरान ग्रामीणों ने कहा कि आयोग में सुनवाई न होने से मजबूरन हम कई मामलों को उच्च न्यायालय में लेकर गए हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले की जांच में काफी गंभीरता बरती जाती है। हर पक्ष को सुनना पड़ता है। सुनवाई के बाद हम क्षेत्र के समाज प्रमुखों से भी उस मामले में बातचीत करते हैं, जानकारी लेते हैं। उन्होंने कहा कि त्वरित निराकरण और त्वरित कार्रवाई आयोग का उद्देश्य है। आवेदक का काम त्वरित न्याय दिलाना है। उन्होंने कहा कि आयोग के पास फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी करने वालों पर कार्रवाई करने की तमाम शिकायतें आई हैं।
आयोग अेसे मामलों की जांच कर रहा है। निश्चित रूप से इसमें कार्रवाई होगी और संबंधित पर वसूली की भी कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले भूमि संबंधी विवादों के आते हैं। कई बार मामले आयोग के बाहर के होते हैं जिसे हम संबंधित अधिकारियों को पत्राचार भी करते हैं। कई मामले न्यायालय के स्तर के होते हैं जिसका निराकरण भी संभव नहीं होता किंतु आवेदक को पूरी जानकारी देकर ही संतुष्ट किया जाता है। उन्होंने कहा कि कई मामलों को हमने स्वतः संज्ञान लिया है। आदिवासी प्रताड़ना के मामले भी आते हैं, इसे हम काफी गंभीरता से जांच कराते हैं। यह भी देखा जाता है कि कहीं शिकायत फर्जी तो नहीं है। पक्ष विपक्ष किसी के साथ अन्याय न हो आयोग इसका भी ध्यान रख रहा है।
उन्होंने कहा कि आयोग में छोटे-छोटे मामले भी आ जाते हैं जिसका त्वरित निराकरण हो जाता है। जटिल मामलों में समय लगता है। सभी पक्षों को सुनना पड़ता है। अधिकांश जगह मैं स्वयं सुनवाई के लिए जाता हूं। कई जगह आयोग के सदस्य गण को सुनवाई की जिम्मेदारी दी जाती है। आयोग के कामकाज में काफी कुछ सुधार हो रहा है।आयोग पर लोगों का भरोसा हो हम ऐसा काम कर रहे हैं। पुरानी फाइलों को निकलवा कर उसकी जांच की जा रही है। अलग-अलग प्रकृति के मामलों की अलग-अलग सूची तैयार की जा रही है। त्वरित निराकरण वाले मामलों को प्राथमिकता से निपटारा किया जा रहा है।