छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का जीवन आज भी समस्याओं से जूझ रहा है. तकरीबन पांच दशकों से बस्तर के दंतेवाड़ा इलाके में लौह उत्खनन किया जा रहा है. अरबों रुपये का लोहा देश-विदेशों में खप चुका है, लेकिन आयरन हिल के नीचे बसे गांव की तस्वीर नहीं बदली है. यहीं वजह है कि माओवादियों की सुरक्षित शरण स्थली बनी हुई है. नई सरकार के गठन के बाद फोर्स का अंदरूनी इलाकों में सर्च ऑपरेशन जारी है. दंतेवाड़ा की डीआरजी ऑप्स को खदान नंबर 11 सी के इलाके में निकली थी, इस दौरान स्थानीय एक गर्भवती महिला को पीड़ा से कराहते हुए देखा. उसके असहनीय दर्द को देखते हुए एसडीओपी कपिल चंद्रा ने सर्च ऑपरेशन बंद करने का आदेश दिया. उन्होंने जवानों से तत्काल महिला को अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा.
जवानों ने खुद की सुरक्षित करते हुए महिला को कंधो पर खाट के सहारे पैदल पहाडिय़ों को पार करना शुरू किया. लगभग 10 किमी पैदल चले, तीन पहाडिय़ों को पार किया और छोट-मोटे नौ नालों से होकर 11 सी तक पहुंचे. यहां से एनएमडीसी ने एंबुलेंस की व्यवस्था की और गर्भवती महिला को परियोजना अस्पताल पहुंचाया. इस दौरान जवानों को भारी खतरा भी था. जवानों ने अपनी परवाह किए बिना मानवता की मिसाल पेश की है.
दो माह पहले माओवादियों ने प्लांट किए थे सीरियल बम
दो माह पहले माओवादियों ने ठीक 11 सी के नीचे से लोहा गांव जाने वाले रास्ते पर 10 आईईडी प्लांट की थी. ये बम 10 किलो से लेकर पांच किलो तक के थे. इन प्रेशर बमों की चपेट में यदि जवान आ जाए तो बचना बेहद मुश्किल था. इसी रास्ते से जान जोखिम में डाल कर जवान गर्भवती महिला को लेकर आए है. इस ऑपरेशन को लीड कर रहे एसडीओपी को माओवादियों की साजिश का भी अंदेशा लग रहा था. वे कहते है महिला को दर्द में तड़पता हुआ भी छोड़ कर नहीं आया जा सकता था. जिस पुलिस को भरोसा जीतना है, गांव के लोगों को माओवादियों के झूठे आभामंडल से बाहर निकालना है तो यह जोखिम उठाना भी जरूरी था. फिलहाल सब ठीक है सही सलामत लौट कर आ गए.
पहाडिय़ों और नालों को पार कर लौटते है गांव
बरसात में यह गांव पूरी तरह से टापू में बदल जाता है. इस गांव में रहने वाले आदिवासियों जीवन वनोपज पर ही आधारित है. सल्फी, बांस इमली महुआ बेचने किरन्दुल आते है. इन उत्पादों को बेच कर वापस पहाडिय़ों और नालों को पार कर गांव लौटते है.