राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को नाबार्ड 25 लाख रुपए भी देगा। इन मॉडल गौठानों में मुर्गी, बकरी, सूअर के साथ ही उन्नत नस्ल के गौवंशीय पशु पाले जाएंगे। कड़कनाथ के हाइब्रिड नस्ल भी तैयार करेंगे।
मवेशियों की देखभाल के लिए बनी योजना बंद:जिन गौठानों पर 11 सौ करोड़ रुपए खर्च किए, उनमें से कई पर कब्जे, कई में ताले
रायपुर / कांग्रेस सरकार की फ्लैगशिप गौठान योजना पर ताला लग चुका है। मवेशियों की देखभाल करने के लिए पिछली सरकार ने प्रदेश के 9 हजार 671 स्थानों पर गौठान बनाए थे। इनका जिम्मा उस इलाके के लोगों को ही एक समिति बनाकर दिया गया था। साढ़े चार साल में सरकार ने इन पर 11 सौ 34 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन यह योजना सफल नहीं हो सकी।
अब सरकार बदलने के बाद तो सभी गौठानों में बदहाली है। कहीं ठेकेदार, प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर गोदाम, कमरे बना लिए हैं तो कहीं ताले लग गए हैं। इन गौठानों में खाद, पेंट, गौ काष्ठ बनाकर बेचने की भी योजना थी, जो उस सरकार के समय ही फेल हो गई थी। भाजपा सरकार ने इन्हें बंद नहीं करने की बात कही है, लेकिन अभी तक किसी भी गौठान में कोई काम शुरू नहीं किया गया है।
रायपुर और आस-पास के जिले गरियाबंद, धमतरी, बलौदाबाजार-भाटापारा और महासमुंद के गांवों में एक भी गौठान खुला हुआ नहीं मिला। गांव वालों ने कहा- जब से नई सरकार बनी है ही गौठानों में कोई काम नहीं हो रहा है। गांव वाले जानवरों को भी नहीं ले जा रहे हैं, क्योंकि अब वहां न पानी उपलब्ध कराया जा रहा और न ही चारा पहुंचाया जा रहा है।
पिछले दो-तीन महीने से गौठानों की सफाई तक नहीं हुई है। जिन टंकियों में जानवर कभी पानी पीते थे वहां गंदगी भरी है। गोबर इकट्ठा करने वाली जगह भी सूख चुकी है। कई गौठानों पर तो कुत्तों ने घर बना लिया है। रायपुर के आउटर में तो गौठानों पर सफाई और कंस्ट्रक्शन करने वाले ठेकेदारों का कब्जा हो गया है। कहीं कहीं तो ठेकेदारों ने अपने स्टाफ के लिए छोटे-छोटे कमरे बना लिए हैं।
राजधानी रायपुर में गोकुल नगर के गौठान केंद्र में बड़ा ताला लग चुका है। वहां काम करने वाली एक महिला ने बताया कि सरकार बदलने के बाद से इसे नहीं खोला गया है। अब इस गौठान में कुत्तों के झुंड ने घर बना लिया है।
पलौद के गौठान केंद्र में भी ताला। बाहर से देखने पर पूरा गौठान खाली दिखाई दिया। देख-रेख करने वाला भी कोई नहीं था। गांव वालों ने बताया कि पहले भी यह जानवर नहीं रखे जाते थे। अब तो वहां कोई जाता ही नहीं है।
मोवा में स्थित गौठान केंद्र पर एक ठेकेदार का कब्जा हो गया है। उसने वहां पर निर्माण सामग्री रखने के साथ ही अपने कर्मचारियों के लिए कमरे भी बना लिए हैं। अब इस गौठान में एक भी जानवर दिखाई नहीं देता है।
दूसरे मद का पैसा गौठानों में लगाया
दैनिक भास्कर को मिली जानकारी के अनुसार जुलाई 2020 में शुरू की गई गौठान योजना में केंद्र सरकार से मिलने वाले फंड का पैसा भी लगा दिया गया। तीन साल में मनरेगा फंड के 816 करोड़, 14वें वित्त आयोग से 99 करोड़, 15 वें वित्त आयोग से 74 करोड़, डीएम एफ से 81 करोड़, समस्त प्राधिकरण से 23 करोड़, संरचना मद से 7 करोड़, स्वच्छ भारत मिशन से 9 करोड़, सीएसआर फंड से 71 लाख और अन्य मदद से मिले 22 करोड़ रुपए गौठान योजना में खर्च किए गए।
करोड़ों का भुगतान, बिक्री लाखों में
गौठान केंद्रों में ही पिछली राज्य सरकार ने गोबर खरीदी का भी इंतजाम किया था। करीब तीन साल में किसानों और लोगों से 247.12 करोड़ रुपए का गोबर खरीदा गया। सरकार का दावा था कि गोबर से पेंट भी बनाया जाएगा। तीन साल में करीब 2 लाख लीटर ही पेंट बन पाया। इसे बेचने से सरकार को करीब 22 लाख रुपए मिले। इतना ही नहीं अफसरों ने सर्वे के बिना ही राज्यभर में 95 पेंट बनाने वाली मशीनें लगाने का फैसला किया। इसमें आचार संहिता के पहले तक 49 बन भी गई।
आगे क्या: गौठानों को अभी बंद नहीं करेंगे
फिलहाल भाजपा की नई सरकार गौठान योजना को बंद नहीं कर रही है। हाल ही में केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने विभाग के अफसरों की बैठक लेकर निर्देश दिए थे कि गौठानों को आर्थिक समृद्धि केंद्र के रूप में विकसित किया जाए। इसके लिए नाबार्ड को नई कार्ययोजना बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। इसके अंतर्गत राज्य के 4 जिलों में एक-एक गौठानों को मॉडल के रूप में विकसित करेंगे। इसके लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को नाबार्ड 25 लाख रुपए भी देगा। इन मॉडल गौठानों में मुर्गी, बकरी, सूअर के साथ ही उन्नत नस्ल के गौवंशीय पशु पाले जाएंगे। कड़कनाथ के हाइब्रिड नस्ल भी तैयार करेंगे।