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चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, नोट करें पूजा विधि, भोग और मंत्र
  • Written by - amulybharat.in
  • Last Updated: 1 अप्रैल 2025,  10:37 AM IST
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चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा, नोट करें पूजा विधि, भोग और मंत्र

 चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना करने का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, माता चंद्रघंटा का स्वरुप शांत, सौम्य और ममता से भरा हुआ है। मां के इस स्वरुप की आराधना करने से साधकों के जीवन से सभी कष्ट दूर होते है। साथ ही घर-परिवार में सुख-समृद्धि का संचार होता है। माता चंद्रघंटा की पूजा से साधक के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है। 

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की द्वितीया और तृतीया तिथि का व्रत एक ही दिन पड़ रहा है। द्वितीया तिथि का समय निकल चुका है और तृतीया तिथि 31 मार्च सुबह 09:11 से 1 अप्रैल सुबह 05:42 तक रहने वाली है। चलिए जानते है मां चंद्रघंटा की पूजा विधि, भोग और मंत्र के बारे में- 

मां चंद्रघंटा पूजा विधि
(Maa Chandraghanta Puja Vidhi)

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें। स्वच्छ कपड़े पहनकर पूजा में बैठे और माता को लाल और पीले वस्त्र अर्पित करें। अब माता को कुमकुम और अक्षत चढ़ाएं। साथ ही पूजा में पीले रंग के फूल भी अर्पित करें, जो माता चंद्रघंटा को विशेष प्रिय है। मां के प्रिय पीले रंग की मिठाई भोग में अर्पित करें। इसमें आप केसर युक्त चावल की खीर अर्पित कर सकते है। इसके पश्चात मां चंद्रघंटा के मंत्रों का जाप करें और दुर्गा सप्तशती का भी पाठ करें और फिर आरती करें। 

मां चंद्रघंटा का प्रिय भोग
(Maa Chandraghanta Priy Bhog)

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा को केसर युक्त चावल की खीर का भोग लगाना शुभ रहता है। इसके अलावा आप केसर युक राबड़ी का भोग भी लगा सकते है। खीर में लौंग, इलायची, पंचमेवा डालना भी बेहतर होगा। यही नहीं, आप भोग में मिश्री और पेड़ा भी ले सकते है। 

मां चंद्रघण्‍टा का पूजा मंत्र
(Maa Chandraghanta Puja Mantra)

पिण्डज  प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।  प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति  विश्रुता ॥
वन्दे वांछित  लाभाय  चन्द्रार्धकृत शेखरम् । सिंहारूढा चंद्रघंटा  यशस्वनीम् ॥
मणिपुर  स्थितां तृतीय दुर्गा  त्रिनेत्राम् । रंग, गदा,  त्रिशूल,चापचर,  पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम् ॥


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