मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को 10 वर्ष से अधिक आयु के नाबालिग बच्चों को स्वतंत्र रूप से बचत/सावधि जमा खाते खोलने और संचालित करने की अनुमति दे दी. केंद्रीय बैंक ने इस संदर्भ में नाबालिगों के जमा खाते खोलने और संचालन पर संशोधित निर्देश जारी किये हैं.
आरबीआई ने वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों को जारी एक परिपत्र में कहा कि किसी भी आयु के नाबालिगों को अपने प्राकृतिक या कानूनी अभिभावक के माध्यम से बचत और सावधि जमा खाते खोलने और संचालित करने की अनुमति दी जा सकती है. उन्हें अपनी मां को अभिभावक के रूप में रखकर भी ऐसे खाते खोलने की अनुमति दी जा सकती है.
परिपत्र में कहा गया, ”कम-से-कम दस वर्ष की आयु सीमा और उससे ऊपर के नाबालिगों को उनकी इच्छा पर स्वतंत्र रूप से बचत/सावधि जमा खाते खोलने और संचालित करने की अनुमति दी जा सकती है. इसमें बैंक अपनी जोखिम प्रबंधन नीति को ध्यान में रखते हुए राशि और शर्त तय कर सकते हैं. इस बारे में जो भी नियम और शर्तें तय की जाती हैं, उस बारे में खाताधारक को जानकारी दी जाएगी.” इसके अलावा, वयस्क होने पर, खाताधारक के नये संचालन निर्देश और नमूना हस्ताक्षर प्राप्त किए जाने चाहिए और उन्हें रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए.
परिपत्र में कहा गया, ”बैंक अपनी जोखिम प्रबंधन नीति, उत्पाद और ग्राहकों के आधार पर नाबालिग खाताधारकों को इंटरनेट बैंकिंग, एटीएम/डेबिट कार्ड, चेक बुक सुविधा आदि जैसी अतिरिक्त सुविधाएं देने के लिए स्वतंत्र हैं.” बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि नाबालिगों के खाते, चाहे वे स्वतंत्र रूप से संचालित हों या अभिभावक के माध्यम से, उनसे अधिक निकासी न हो और इसमें हमेशा राशि रहे.
आरबीआई ने कहा कि इसके अलावा, बैंक नाबालिगों के जमा खाते खोलने के लिए ग्राहक की उचित जांच-पड़ताल करेंगे और इसे आगे भी जारी रखेंगे. केंद्रीय बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे एक जुलाई, 2025 तक संशोधित दिशानिर्देशों के अनुरूप नई नीतियां बनाएं या मौजूदा नीतियों में संशोधन करें.
बैंकों को डिजिटल सुविधाओं वाली जमाओं पर 2.5 प्रतिशत अतिरिक्त राशि अलग रखने का निर्देश
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को बैंकों को निर्देश दिया कि वे अगले साल एक अप्रैल से इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग की सुविधाओं से युक्त खुदरा और छोटे व्यावसायिक ग्राहकों की जमा पर बफर के रूप में 2.5 प्रतिशत अतिरिक्त नकदी निर्धारित करें ताकि दबाव के समय किसी भी संभावित जोखिम से बचा जा सके.
आरबीआई ने पिछले साल जुलाई में पांच प्रतिशत अतिरिक्त ‘रन-ऑफ फैक्टर’ का प्रस्ताव किया था. इसका मतलब जमाराशि के उस प्रतिशत से है, जिसे बैंक दबाव के समय में वापस लिए जाने की अपेक्षा करता है. कुछ देशों में यह पाया गया कि वित्तीय दबाव की स्थिति में जमाकर्ताओं ने डिजिटल बैंकिंग का उपयोग करते हुए अपना पैसा तुरंत निकाल लिया. संशोधित रूपरेखा उसी को ध्यान में रखकर लाई गई है.
आरबीआई ने एक परिपत्र में कहा कि एक अप्रैल, 2026 से बैंकों को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं (आईएमबी) वाली खुदरा जमाओं के लिए अतिरिक्त 2.5 प्रतिशत ‘रन-ऑफ फैक्टर’ आवंटित करना होगा. आरबीआई ने कहा कि यह निर्णय पिछले जुलाई में जारी ‘नकदी मानकों पर बासेल-तीन रूपरेखा – नकदी कवरेज अनुपात (एलसीआर) – उच्च गुणवत्ता वाली नकद परिसंपत्तियों (एचक्यूएलए) पर कटौती की समीक्षा और जमा की कुछ श्रेणियों पर ‘रन-ऑफ दरों’ पर दिशानिर्देशों के मसौदे पर विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रिया के बाद लिया गया है.
ताजा दिशानिर्देशों के अनुसार, ”बैंक को इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं (आईएमबी) से युक्त खुदरा जमाराशियों के लिए 2.5 प्रतिशत का अतिरिक्त ‘रन-ऑफ फैक्टर’ निर्धारित करना होगा. इसका मतलब है कि आईएमबी सुविधा से युक्त स्थिर खुदरा जमाराशियों के लिए 7.5 प्रतिशत ‘रन-ऑफ फैक्टर’ होगा और आईएमबी से युक्त कम स्थिर जमाराशियों के लिए 12.5 प्रतिशत रन-ऑफ फैक्टर होगा. वर्तमान में यह क्रमश: पांच प्रतिशत और 10 प्रतिशत है.”
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