रायपुर। 24 अप्रैल 2025 को शासन द्वारा प्रकाशित गजट अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि अब रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण स्वतः हो जाएगा। जनता इस निर्णय का स्वागत कर रही है, क्योंकि इससे नामांतरण की जटिल और समय-साध्य प्रक्रिया में काफी हद तक सुधार होगा। यह एक ऐसा निर्णय है, जो वास्तव में "ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस" और "ईज़ ऑफ सर्विस डिलीवरी" की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
लेकिन जमीनी स्तर पर कार्यरत अधिकारी और आमजन इससे जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं को लेकर चिंतित भी हैं। अधिसूचना में कुछ ऐसे बिंदुओं पर स्पष्टता नहीं दी गई है, जिनका सीधा प्रभाव भूमि विवाद, राजस्व रिकॉर्ड और अधिकार-संरक्षण पर पड़ेगा।
प्रमुख सवाल जो उठाए जा रहे हैं:
सिर्फ विक्रय विलेख (Sale Deed) का ही उल्लेख क्यों? पंजीकृत दान पत्र, हक त्याग, बंटवारा आदि दस्तावेज़ों के संदर्भ में कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं।
राजस्व संहिता की नियमावली का अनुपालन कैसे होगा? विशेषकर धारा 110 और नियम 27 जैसे प्रावधानों के संदर्भ में अधिसूचना मौन है।
दावा-आपत्ति की प्रक्रिया का क्या होगा? यदि रजिस्ट्री के साथ ही नामांतरण हो जाता है, तो आपत्तियों के निपटारे और हितबद्ध पक्षों को सुनवाई का अवसर कैसे मिलेगा?
फर्जी रजिस्ट्री, शासकीय/पट्टे की भूमि, नाबालिग या विवादित संपत्ति पर रजिस्ट्री की स्थिति में क्या होगा? बिना जांच के नामांतरण से गंभीर विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
क्या उपपंजीयक को राजस्व अधिकारी का दर्जा मिला है? यदि नहीं, तो वह नामांतरण जैसे संवेदनशील कार्यों को कैसे प्रमाणित करेगा?
भविष्य में गलत नामांतरण या रिकॉर्ड की त्रुटियों की समीक्षा के लिए कौन जिम्मेदार होगा? क्या उपपंजीयक को धारा 51 के अंतर्गत पुनर्विलोकन का अधिकार दिया जाएगा?
बटांकन की प्रक्रिया का समन्वय कैसे होगा? नामांतरण और नक्शा सुधार एकसाथ चलता है, यह पहलू भी अस्पष्ट है।
संसाधनों की कमी बड़ी चुनौती
राजस्व विभाग की जमीनी हकीकत इससे भी अधिक चिंताजनक है। वर्तमान में तहसील कार्यालयों में केवल 30-40% स्टाफ कार्यरत है। नायब तहसीलदारों और तहसीलदारों के पास न वाहन हैं, न ड्राइवर, न तकनीकी स्टाफ। नोटिस तामील करने वाले कर्मचारी भी नहीं हैं, और तकनीकी कार्यों के लिए आवश्यक उपकरणों—जैसे लैपटॉप, इंटरनेट, दक्ष ऑपरेटर—की घोर कमी है।
शासन को विचारना चाहिए:
रजिस्ट्री के साथ नामांतरण की प्रक्रिया के लिए स्पष्ट, ठोस और न्यायसंगत नियमावली तैयार की जाए।
इश्तिहार प्रकाशन, हितबद्ध पक्षकारों को सुनवाई का अवसर और नियमित दावा-आपत्ति निवारण प्रक्रिया सुनिश्चित की जाए।
विवादित/संवेदनशील श्रेणी की भूमि के नामांतरण से पूर्व अनिवार्य जांच प्रणाली, जवाबदेही का निर्धारण और तकनीकी व मानव संसाधनों का सुदृढ़ीकरण तत्काल आवश्यक है।
शासन इस प्रक्रिया को केवल 'ऑन पेपर सरलीकरण' तक सीमित रखता है, और जमीनी व्यवस्थाओं को नज़रअंदाज़ करता है, तो यह निर्णय आने वाले समय में नए विवादों और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं की जड़ बन सकता है।
ज्वाला प्रसाद अग्रवाल, कार्यालय शाप न. 2 संतोषी मंदिर परिसर,गया नगर दुर्ग , छत्तीसगढ़, पिनकोड - 491001
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