जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बायसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने 23 अप्रैल को ऐतिहासिक सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष भारतीय पर्यटक मारे गए थे। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों को जिम्मेदार ठहराया था, जिसके बाद सीमा पर तनाव बढ़ गया और कई दिनों तक सैन्य संघर्ष चलता रहा। हाल ही में दोनों देशों के बीच सीजफायर की घोषणा हुई है, लेकिन भारत का रुख अब भी कड़ा बना हुआ है।
पाकिस्तान में सिंधु जल समझौते के निलंबन का असर साफ दिखाई देने लगा है। देश के कई इलाकों में जल संकट गहराने लगा है। इस स्थिति के बीच पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय को पत्र लिखकर सिंधु जल समझौते को बहाल करने की अपील की है। उन्होंने बातचीत की इच्छा जताते हुए कहा कि पानी जीवन का स्रोत है और इसे राजनीतिक तनाव से अलग रखा जाना चाहिए।
हालांकि, भारत सरकार ने इस अपील को सख्ती से खारिज कर दिया है। भारत का कहना है कि जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगाता, तब तक किसी भी तरह की सहमति या समझौते की पुनर्बहाली संभव नहीं है।
केंद्र सरकार के इस रुख पर छत्तीसगढ़ में भी राजनीतिक हलकों से प्रतिक्रियाएं आई हैं। राज्य के मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने केंद्र सरकार के इस निर्णय को "राष्ट्रहित में आवश्यक और उचित कदम" बताया है। उन्होंने कहा कि "हमारे नागरिकों की जान लेने वालों को माफ नहीं किया जा सकता। जो देश आतंकवाद को समर्थन देता है, उससे किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए।"
छत्तीसगढ़ के जल विशेषज्ञों का मानना है कि सिंधु जल संधि पर भारत का यह सख्त रुख भविष्य में दक्षिण एशिया में जल कूटनीति के समीकरण बदल सकता है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए यह स्पष्ट है कि भारत अब आतंकवाद और बातचीत को एक साथ नहीं चलने देने की नीति पर कायम है।
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