दफ्तरों की चौखटों से मुक्ति: 8 करोड़ की ग्रेच्युटी सूची सार्वजनिक, कर्मचारियों को राहत की उम्मीद
दुर्ग।ज्वाला एक्सप्रेस न्यूज नगर निगम दुर्ग में वर्षों से लंबित ग्रेच्युटी (उपादान) भुगतान को लेकर जूझ रहे कर्मचारियों को अब राहत की किरण नजर आने लगी है। महापौर अलका बाघमार और वित्त विभाग प्रभारी नरेन्द्र बंजारे की सहमति पर निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल ने एक अहम कदम उठाते हुए पात्र कर्मचारियों की सूची सार्वजनिक कर दी है। यह पहल न केवल पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि इससे उन सैकड़ों कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान लौटेगी, जो वर्षों से अपनी मेहनत की कमाई के लिए भटक रहे थे।
करीब 300 कर्मचारी, जिन्होंने पाँच वर्ष या उससे अधिक की सेवा दी है, 8 करोड़ रुपये से अधिक की ग्रेच्युटी के हकदार हैं। अब तक इनका भुगतान प्रक्रियाओं की अस्पष्टता और विभागीय लापरवाही के चलते अटका हुआ था। लेकिन सूची के सार्वजनिक होने से भ्रष्टाचार और टालमटोल की रवायत पर पहली बार प्रभावी अंकुश लगने की उम्मीद है।
नगर निगम की इस पहल से कर्मचारियों को न केवल मानसिक राहत मिली है, बल्कि इससे शासन-प्रशासन में भरोसा भी बहाल हुआ है। वर्षों से अधिकारियों के चक्कर लगाते कर्मचारियों की शिकायत थी कि फाइलें दबाई जाती हैं, जवाबदेही तय नहीं होती, और उनकी जीवन भर की जमा पूंजी धुंधली होती जा रही थी।
महापौर अलका बाघमार ने स्पष्ट कहा है कि, "कर्मचारी हमारे तंत्र की रीढ़ हैं। उनके अधिकारों की रक्षा और न्यायपूर्ण भुगतान हमारी प्राथमिकता है।" वित्त प्रभारी ने भी आश्वासन दिया है कि आगे की प्रक्रिया को भी पारदर्शी और समयबद्ध किया जाएगा।
इस कदम से शासन की मंशा स्पष्ट होती है कि अब कर्मचारियों के हक को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। सूची के सार्वजनिक होने से वे विभागीय 'बिचौलियों' पर भी रोक लगेगी, जो वर्षों से इस व्यवस्था में सेंध लगाकर अपना लाभ देखते आए हैं।
कर्मचारियों की उम्मीदें जगीं
भूतपूर्व निगमकर्मी रामनारायण वर्मा कहते हैं, "हमने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन अब पहली बार लग रहा है कि हमारी आवाज सुनी गई है। यह सूची हमारी लड़ाई की पहली जीत है।"
अब आगे क्या?
पात्र कर्मचारियों को जल्द भुगतान की प्रक्रिया शुरू होगी
भुगतान प्रक्रिया की निगरानी के लिए अलग प्रकोष्ठ गठन की संभावना
भविष्य में हर तिमाही सार्वजनिक समीक्षा की मांग
निष्कर्ष:
दुर्ग नगर निगम ने एक सकारात्मक मिसाल पेश की है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक ईमानदारी साथ हो, तो वर्षों पुरानी समस्याएं भी सुलझ सकती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल एक स्थायी व्यवस्था की नींव रखेगी, जहां कर्मचारी अधिकारों के लिए दर-दर न भटकें, बल्कि उन्हें उनके हक समय पर और सम्मानपूर्वक मिले।
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