इंदौर कुटुंब न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए पत्नी को भरण-पोषण की राशि देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि पत्नी सुलोचना के पास पति अमन से अलग रहने का कोई वैध और ठोस कारण नहीं है। हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि पत्नी स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ है और पति भरण पोषण नहीं कर रहा, लेकिन कानूनी दृष्टिकोण से पत्नी की मांग को उचित नहीं ठहराया।
कोर्ट ने कहा कि भले ही पत्नी आर्थिक रूप से निर्भर हो, परंतु जब तक अलग रहने का पर्याप्त कारण नहीं है, वह भरण-पोषण की हकदार नहीं मानी जा सकती। यह आदेश कुटुंब न्यायालय के प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश धीरेंद्र सिंह ने सुनाया।
मामले में एडवोकेट कृष्ण कुमार कुन्हारे ने बताया कि सुलोचना ने मई 2022 में अपने पति अमन पर दहेज प्रताड़ना के आरोप लगाए और भरण-पोषण की मांग की। सुलोचना ने ₹17,000 खुद के लिए और ₹18,000 बच्चों के लिए भरण पोषण की मांग की थी। अमन ने इसका विरोध करते हुए दावा किया कि आरोप झूठे हैं और सुलोचना आज भी उसका डेबिट कार्ड इस्तेमाल कर रही है।
कोर्ट ने अमन की मासिक आय ₹60,000 मानते हुए दोनों नाबालिग बच्चों के लिए ₹15,000 मासिक भरण पोषण राशि निर्धारित की। अदालत ने सुलोचना की व्यक्तिगत भरण-पोषण की मांग को खारिज करते हुए कहा कि पति से अलग रहने का कोई पर्याप्त कारण न होने के चलते पत्नी भरण-पोषण की अधिकारी नहीं है।
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