धमतरी। गंगरेल बांध के डूब में आए 52 गांव की अधिष्ठात्री देवी मां अंगारमोती की महिमा अपरंपार है। माता के दर्शन के लिए धमतरी शहर के अलावा अन्य प्रदेशों से भी श्रद्धालु साल भर पहुंचते रहते हैं। धमतरी शहर से ग्राम गंगरेल स्थित मां अंगारमोती मंदिर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है। लोग सीधे बस स्टैंड से ऑटो व अन्य वाहन से यहां पहुंच सकते हैं।
मंदिर का इतिहास
अंगारमोती मंदिर ट्रस्ट के पुजारी देवसिंग नेताम, तुकाराम मरकाम, सुदेसिंग मरकाम, ईश्वर सिंग नेताम, कमलेश नेताम, नरेन्द्र नेताम, केशव नेताम ने बताया कि सन 1973 में गंगरेल बांध बनने के पहले इस क्षेत्र में 52 गांव का वजूद मौजूद था। महानदी,डोड़की नदी तथा सूखी नदी के संगम पर ही तीन गांव चंवर,बटरेल तथा कोरलम स्थित थे।
जनश्रुतियों के अनुसार मां अंगारमोती अंगिरा ऋषि की पुत्री है,जो धरती से प्रकट हुई हैं। पूर्व में इन गांवों की टापू पर स्थित मां अंगारमोती की मूर्ति को बांध बनने के बाद बांध किनारे ही स्थापित कर दिया गया। अभी भी 52 गांव के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरूआत के लिए मां अंगारमोती के दरबार पहुंचते हैं।
मंदिर की विशेषता
मां अंगारमोती ट्रस्ट के सचिव ढालूराम ध्रुव ने बताया कि क्वांर व चैत्र नवरात्र में हजारों श्रध्दालु यहां मनोकामना ज्योत प्रज्जवलित करते हैं। प्रतिवर्ष दीपावली के बाद प्रथम शुक्रवार को माता दरबार में मड़ाई भरता है। इसमें 52 गांव के देवी-देवता आते हैं। जानकारी के मुताबिक माता के दरबार में सिद्ध भैरव भवानी, डोकरा देव, भंगाराम की स्थापना है। 400 साल से कच्छप वंशीय (नेताम) ही मां अंगार मोती की पूजा सेवा करते आ रहे हैं।
मां अंगारमोती के पुजारी सुदेसिंग मरकाम ने कहा, मां अंगारमोती की महिमा अपरंपार है सच्चे मन से की गई पूजा यहां व्यर्थ नहीं जाती। माता के मंदिर में आने से लोगों के दुख दूर हो जाते हैं। हर साल मां की महिमा बढ़ती ही जा रही है।
श्रद्धालु अतिश वर्मा ने कहा, मां अंगारमोती के दर्शन मात्र से शांति की अनुभूति होती है। मां सब पर कृपा बरसाती हैं। वे सालों से यहां माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।
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