रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक है और मार्केट में राखियों की ढेरों वैरायटी मौजूद हैं। कहीं रेशमी धागों, मोती और सीप से तैयार राखियां बहनों को भा रही हैं तो कहीं चांदी की सुंदर सी राखी ने बहनों का मन मोह लिया है। लेकिन आज जब हर जगह पर्यावरण संरक्षण की बात की जाती है तो अब बहनों ने भी इको फ्रेंडली राखी बनाने की लाइन पकड़ ली है। जिसमें कोई गोबर से राखियों को नायाब रूप दे रहा है तो किसी ने कपड़े की बची हुई कतरनों और बीज राखी के रूप में राखियों को बनाया है। यह राखियां इको फ्रेंडली होने के साथ साथ पूरी तरह हेंडमेड भी है, जिन्हें ज्यादातर बहनों ने अपने प्यारे भाईयों के लिए बनाया है।
स्वदेशी जागरण मंच मध्य भारत प्रान्त प्रमुख सीमा भारद्वाज ने कहा कि हम पिछले कई सालों से बीज राखी के रूप में राखी बनाते है और कई कार्यशालाओं के जरिए इस तरह की राखियां बनाना बच्चों को सिखाते भी हैं, ताकि वो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ें। उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में हमनें नवीन शा स्कूल में बीज राखी की कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें कलावे के भीतर बीज रखकर राखी बनाने की कार्यशाला ली, इसके लिए हमनें कागज की लुगदी या गत्ते के सुंदर टुकड़ों को शेप में काटकर, उन्हें मोती, सीप, रेशमी धागों से सजाकर, उनके ऊपर बीज चिपकाते हैं और जब भाईयों की कलाई पर यह राखी पुरानी हो जाती है तो वो राखी का बीज गमले में रौंप देते है, जिससे सुंदर पौधा बनकर तैयार हो जाता है।
सीमा ने कहा कि हम इन राखियों में तुलसी, अपराजिता, बेल या अन्य कोई बीज डालते हैं। जिससे एक पौधा बनता है और यह पौधा भाई बहन के इस प्यार को और भी अटूट बना देता है। उन्होंने कहा कि स्कूल की सैकड़ों लड़कियों ने हमारी इस कार्यशाला में भाग लिया और इको फ्रेंडली बीज राखी बनाना सीखा। हन इन राखियों का ऑनलाइन प्रचार प्रसार करते है, और लोग हमारी कार्यशाला में या तो यह राखियां बनाना सीखते हैं या फिर इन्हें खरीद लेते हैं।
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