नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ, नगपुरा में आयोजित चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत आज साध्वी श्री लब्धियशाश्रीजी म.सा. ने "मितभाषण और वाणी संयम" पर उद्बोधन देते हुए कहा कि जीवन में अल्पभाषिता और मितभाषण का अत्यधिक महत्व है। उन्होंने कहा कि "बोलना" मानव जीवन का सबसे बड़ा कार्य है, परंतु यह समझना आवश्यक है कि कब, कितना और क्या बोलना है।
साध्वीश्री ने कहा कि अक्सर व्यक्ति बिना आवश्यकता के भी बोलता रहता है, जबकि आवश्यकता के समय भी संयत और सीमित वाणी का प्रयोग करना चाहिए। जो व्यक्ति कम बोलना शुरू कर देता है, वह जीवन की गहराई को समझने लगता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो अधिक बोलता है उसका मूल्य घटता जाता है, जबकि अल्पभाषी व्यक्ति अधिक मूल्यवान बनता है और उसकी बातों को लोग ध्यान से सुनते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि साधना और आराधना के समय मौन रहना श्रेष्ठ साधना है। यदि पूर्ण मौन संभव न हो तो कम से कम अनावश्यक वार्तालाप, घरेलू चर्चा और व्यापारिक बातचीत से दूरी बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने अनुशंसा की कि प्रत्येक व्यक्ति को दिन में कम से कम एक से दो घंटे मौन रहकर आत्मचिंतन करना चाहिए। यह अभ्यास जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है।
आज का विशेष आयोजन..
चातुर्मास आराधना के अंतर्गत आज आराधकों ने एक दिन के लिए मोबाइल का त्याग कर मौन साधना की। साथ ही श्रद्धालुजनों ने श्री पद्मावती माता को अष्टोत्तरी मंत्रों के साथ चुनरी समर्पित कर भक्तिभाव प्रकट किया। वातावरण में भक्ति, संयम और साधना का अद्भुत संगम देखने को मिला।
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