कांकेर। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में बढ़ते धर्मांतरण के मामलों से चिंतित होकर 20 गांवों के समाज प्रमुखों ने एकजुट होकर सख्त फैसला लिया है। सुलगी गांव में रविवार को आयोजित एक अहम बैठक में गांव में बाहरी धार्मिक प्रचारकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया गया।
बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि गांव की परंपराओं, सांस्कृतिक पहचान और आदिवासी रीति-रिवाजों को बचाए रखने के लिए यह कदम जरूरी हो गया था। ग्राम सभा ने प्रस्ताव पारित कर सुलगी गांव के प्रवेश द्वार पर बोर्ड लगाया है, जिसमें साफ लिखा गया है कि धर्मांतरण की मंशा से आने वाले किसी भी व्यक्ति – विशेषकर पास्टर या पादरी – का गांव में प्रवेश निषिद्ध रहेगा।
सुलगी गांव में अब तक 16 परिवारों ने धर्म बदला, जिनमें से 2 परिवारों को पुन: समाज में जोड़ा गया है, जबकि 14 परिवार अभी भी दूसरे धर्म का पालन कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, इससे गांव का सामाजिक संतुलन, सांस्कृतिक परंपराएं और शांति-व्यवस्था प्रभावित हो रही हैं।
ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि यह विरोध किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि गांव के भोले-भाले लोगों को प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने के खिलाफ है। उनका मानना है कि इस तरह की गतिविधियां आदिवासी संस्कृति और परंपरा के लिए खतरा बन रही हैं।
ग्राम सभा ने अपने इस निर्णय को पेशा अधिनियम 1996 और भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची में मिले अधिकारों के तहत लिया है। इन प्रावधानों के अनुसार, ग्राम सभा को अपनी सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक रीति-रिवाजों को संरक्षित करने का अधिकार प्राप्त है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि भानुप्रतापपुर ब्लॉक के कुडाल गांव में इस प्रकार की रोक की पहल पहले ही की जा चुकी है। वहां 9 परिवारों ने धर्म परिवर्तन किया था, और एक महिला की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को लेकर विवाद होने पर गांव में पास्टर-पादरियों के प्रवेश पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया था।
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