सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खजुराहो के जवारी (वामन) मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फीट ऊँची खंडित मूर्ति की बहाली के लिए दाखिल याचिका को खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि यह याचिका "पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन" जैसी लगती है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में न्यायालय का नहीं बल्कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का दायित्व बनता है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि भगवान विष्णु की यह मूर्ति मुग़लों के आक्रमणों के समय खंडित हुई थी और आज तक उसी अवस्था में है। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के पूजा-अधिकार और मंदिर की पवित्रता को पुनर्जीवित करने के लिए मूर्ति की बहाली ज़रूरी है।
इस पर सीजेआई गवई ने कहा –
"अगर आप भगवान विष्णु में आस्था रखते हैं तो प्रार्थना कीजिए। हमें क्यों आदेश देना चाहिए? आप खुद भगवान से आशीर्वाद मांग सकते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि पुरातात्विक महत्व की धरोहरों की मरम्मत और संरक्षण का काम एएसआई (Archaeological Survey of India) की ज़िम्मेदारी है। अदालत ने कहा कि धार्मिक भावनाओं से जुड़े मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप हर बार संभव नहीं है।
सबूत और ऐतिहासिक तथ्यों पर अदालत ने सवाल उठाए।
बहाली का निर्णय तकनीकी और पुरातात्विक विशेषज्ञों का विषय माना।
अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं ज़्यादातर "पब्लिसिटी" के लिए लाई जाती हैं।
खजुराहो का जवारी मंदिर (जिसे वामन मंदिर भी कहा जाता है) विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा है। यहाँ भगवान विष्णु की यह खंडित मूर्ति सदियों से वैसी ही स्थिति में है। इसे भारतीय संस्कृति और कला के अद्वितीय प्रतीकों में गिना जाता है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला साफ करता है कि धरोहर संरक्षण का मामला अदालत नहीं बल्कि विशेषज्ञ संस्थानों के अधिकार क्षेत्र में है। साथ ही, आस्था से जुड़े मुद्दों पर न्यायालय ने एक तरह से श्रद्धालुओं को अपनी भक्ति और विश्वास की ओर लौटने का संदेश दिया है।
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