रुसा 2.0 अंतर्गत संस्कृत विभाग में व्याख्यान आयोजन
दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग में संस्कृत विभाग द्वारा रुसा 2.0 के अंतर्गत एक विशिष्ट व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अजय सिंह के मार्गदर्शन में हुआ। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में आर्य समाज के ख्याति प्राप्त वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. अजय आर्य तथा डॉ. ललित प्रधान आर्य उपस्थित रहे।
डॉ. ललित प्रधान आर्य ने “भारतीय ज्ञान परंपरा में व्याकरण शास्त्र” विषय पर अपने व्याख्यान में व्याकरण की परंपरा, उसके विकास क्रम और विद्वानों के योगदान पर सरल व रोचक प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय व्याकरण केवल भाषा की संरचना नहीं, बल्कि विचार और अभिव्यक्ति की शुद्धता का आधार है।
मुख्य वक्तव्य में आचार्य डॉ. अजय आर्य ने कहा कि महाभारत केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, नीति, धर्म और जीवन मूल्यों का शाश्वत पाठ है। यह विश्व का सबसे विशाल महाकाव्य है, जिसमें एक लाख से अधिक श्लोक हैं, और इसे ‘पंचम वेद’ की उपाधि प्राप्त है। उन्होंने कहा कि महाभारत में ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति, नीति, कर्तव्य, अध्यात्म, परिवार, मित्रता और धर्म का अद्भुत संगम मिलता है।
डॉ. आर्य ने अपने वक्तव्य में महाभारत के दो प्रेरक प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि जब दुर्योधन और उसके भाइयों को बंदी बना लिया गया, तब युधिष्ठिर ने कहा- “यह सत्य है कि कौरव सौ हैं और पांडव पाँच, परंतु जब कोई बाहरी शक्ति हमारे विरुद्ध होती है तब हम 105 हैं।” यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि मतभेदों को भुलाकर समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहिए।
दूसरे प्रसंग में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के स्वाभिमान और विवेक का उल्लेख करते हुए कहा कि जब दुर्योधन ने उन्हें राजकीय भोज के लिए आमंत्रित किया, तब श्रीकृष्ण ने कहा— “भोजन दो ही कारणों से किया जाता है— प्रेमवश या विपत्ति में। किंतु न तो हमारे बीच प्रेम है और न मैं विपत्ति में हूँ, इसलिए मैं तुम्हारे यहाँ भोजन नहीं कर सकता।” यह प्रसंग जीवन में प्रेम, निष्ठा और आत्मसम्मान की सर्वोच्चता का प्रतीक है।
डॉ. आर्य ने कहा कि महाभारत केवल युद्ध का आख्यान नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक आयाम को दिशा देने वाला ग्रंथ है। यह धर्म, कर्तव्य, नीति, सहयोग और आत्मबल का अमर संदेश देता है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि महाभारत का अध्ययन हमें जीवन के निर्णयों में संतुलन और विवेक प्रदान करता है।
कार्यक्रम का संचालन बी.ए. प्रथम सेमेस्टर के छात्र डागेश्वर ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. जनेंद्र कुमार दीवान द्वारा किया गया। अंत में विभागाध्यक्ष ने अतिथियों एवं उपस्थित जनों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन विद्यार्थियों में भारतीय परंपरा और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था जगाते हैं।
यह व्याख्यान विद्यार्थियों के लिए अत्यंत ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायी एवं मूल्यपरक सिद्ध हुआ जिसने महाभारत के माध्यम से भारतीय संस्कृति की गहराई और जीवन दर्शन को समझने का सशक्त अवसर प्रदान किया।
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