देसी पटाखा गन से अकेले भोपाल में 150 से ज्यादा लोगों की आंखें जल चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा 7 से 14 साल के बच्चे शामिल हैं। गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के नेत्र विभाग में 36 मरीजों का इलाज चल रहा है। अब तक 15 की सर्जरी की जा चुकी है, जबकि दो बच्चों की आंखों में डॉक्टरों ने एमनियोटिक मेम्ब्रेन लगाई है। यह वही झिल्ली जो प्रसव के दौरान गर्भ से निकलती है और अब आंखों की रोशनी बचाने की उम्मीद बन गई है।
डॉक्टरों का कहना है कि यह ‘जीवित पट्टी’ घाव भरने और आंख की पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करती है। झिल्ली इंदौर से मंगाई गई थी और इसे लगने के दो से तीन सप्ताह बाद ही पता चलेगा कि आंखों की रोशनी कितनी बच सकी है।
इस गन को घरेलू तरीके से बनाया जाता है। यह 100-200 रुपए में बिक रही है।
क्या है एम्नियोटिक मेम्ब्रेन जीएमसी की नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अदिति दुबे ने बताया कि एमनियोटिक मेम्ब्रेन (Amniotic Membrane) प्लैसेंटा (गर्भनाल) की सबसे अंदरूनी झिल्ली होती है। यह बेहद पतली, पारदर्शी और लचीली परत होती है जिसमें ग्रोथ फैक्टर, एंटी इंफ्लैमेटरी प्रोटीन और हीलिंग एजेंट प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं। प्रसव के बाद यह झिल्ली सुरक्षित रूप से ली जाती है, फिर स्टेराइल प्रक्रिया से संरक्षित (preserve) की जाती है ताकि इसे जरूरत पड़ने पर सर्जरी में इस्तेमाल किया जा सके।
डॉ. दुबे के अनुसार, एमनियोटिक मेम्ब्रेन आंख की सतह पर एक प्राकृतिक पट्टी (biological bandage) की तरह काम करती है। इसे तब लगाया जाता है जब आंख का ऊपरी हिस्सा यानी कॉर्निया या कंजंक्टाइवा गंभीर रूप से घायल, संक्रमित या जल चुका हो।
इन रोगों में यह झिल्ली होती है उपयोगी
एमनियोटिक मेम्ब्रेन इसलिए कारगर
दो घंटे में दो मरीजों में की गई इंप्लांट जीएमसी के नेत्र विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, दोनों बच्चों में यह सर्जिकल प्रोसीजर कर लगाई गई। बुधवार को दोनों सर्जरी दो घंटे में पूरी कर लगी गई थी। है। इसके लिए मरीजों की आंख में लोकल एनेस्थीसिया देकर झिल्ली को कॉर्निया पर रखा गया। इसके बाद उसे बायोग्रेडेबल गोंद से स्थिर कर दिया गया। मेम्ब्रेन धीरे-धीरे खुद घुल जाएगी। जिससे नीचे नई कोशिकाएं बनने लगेंगी। जितनी ज्यादा कोशिकाएं बनेंगी, उतना ही ज्यादा विजन लौटने की संभावना रहेगी।
डॉ. अदिति दुबे ने कहा कि पटाखा गन से आई चोटों में कई मरीजों की कॉर्निया बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है। एमनियोटिक मेम्ब्रेन ऐसे मामलों में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। यह झिल्ली आंख को संक्रमण से बचाती है, पारदर्शिता लौटाने में मदद करती है और कई बार दृष्टि को पूरी तरह बहाल भी कर देती है। हालांकि, इसके रिजल्ट दो से तीन हफ्ते के बाद साफ हो पाते हैं।
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