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बीजेपी-RSS दफ्तरों में कभी नहीं गाया गया वंदे मातरम् - मल्लिकार्जुन खड़गे
  • Written by - amulybharat.in
  • Last Updated: 7 नवम्बर 2025,  08:51 PM IST
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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा और आरएसएस पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि उनके दफ्तरों और शाखाओं में कभी भी वंदे मातरम् या राष्ट्रगान जन गण मन नहीं गाया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर बीजेपी और आरएसएस पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जो लोग आज खुद को राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा झंडाबरदार बताते हैं, उनके दफ्तरों और शाखाओं में कभी भी वंदे मातरम् या राष्ट्रगान जन गण मन नहीं गाया गया। खरगे ने यह बात सोशल मीडिया पर लिखी एक लंबी पोस्ट में कही, जिसमें उन्होंने कांग्रेस और वंदे मातरम् के ऐतिहासिक संबंधों को भी याद किया।

वंदे मातरम् का कांग्रेस से गहरा रिश्ता

खड़गे ने लिखा कि वंदे मातरम् ने भारत की सामूहिक आत्मा को जगाया और स्वतंत्रता का नारा बन गया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत भारत माता और देश की एकता व विविधता का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम् गाया था, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा मिली।

अंग्रेजों ने लगाया था प्रतिबंध

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वंदे मातरम् ब्रिटिश साम्राज्य की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक बना। 1905 में बंगाल विभाजन के समय से लेकर क्रांतिकारियों की अंतिम सांस तक यह गीत पूरे देश में गूंजता रहा। अंग्रेज इस गीत की लोकप्रियता से डर गए और उस पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन चुका था।

गांधी और नेहरू ने बताया ‘जनता का गीत’

खरगे ने महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि वंदे मातरम् किसी पर थोपा नहीं गया, बल्कि यह स्वतः ही जनता के दिलों में बस गया। 1938 में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। यह भारत की विविधता में एकता का प्रतीक बन गया।

बीजेपी-RSS पर खरगे का निशाना

पोस्ट के अंत में खड़गे ने कहा कि विडंबना यह है कि जो लोग राष्ट्रवाद का दावा करते हैं, उन्होंने कभी अपने दफ्तरों या शाखाओं में वंदे मातरम् या जन गण मन नहीं गाया। इसके बजाय वे ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाते हैं, जो राष्ट्र का नहीं बल्कि संगठन का गुणगान करता है। खरगे ने कहा कि 1925 में स्थापना के बाद से आरएसएस के किसी साहित्य या ग्रंथ में वंदे मातरम् का उल्लेख तक नहीं मिलता।

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