छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में वर्ष 2022 में केंद्र सरकार की ओर से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में विकास कार्यों को लेकर कोरबा जिला प्रशासन को 6 करोड़ 27 लाख 56 हजार रुपए प्रदान किए गए थे। इस पैसे से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में छात्रावास का निर्माण, बिजली, पंखा, नलकूप खनन आदि से संबंधित कार्य किया जाना था। इस कार्य के लिए कोरबा जिला प्रशासन ने 6 जून 2022 को एक आदेश जारी किया था और इसके तहत आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त को कार्य एजेंसी नियुक्त किया था।
आदिवासी विकास विभाग में दो साल पहले हुई गड़बड़ी उस समय सहायक आयुक्त के पद माया वारियर की पदस्थापना थी। बताया जाता है कि उक्त राशि में से 4 करोड़ 95 लाख 79 हजार रुपए आश्रम और छात्रावासों की मरमत एवं इनमें सामाग्री की आपूर्ति पर खर्च किया जाना था। इसमें से 4 करोड़ 4 लाख रुपए सिविल कार्य के लिए प्रदान किए गए थे। इस राशि में से लगभग 3 करोड़ रुपए का व्यय तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के कार्यकाल में हुआ। चूंकि संविधान के अनुच्छेद 275ए के तहत इस राशि से खर्च किए जाने से संबंधित सारे दस्तावेज जैसे मेजरमेंट बुक, देयक की मूल नस्ती कार्यालय में होनी थी मगर ये सभी दस्तावेज कार्यालय में नहीं मिले। मामला सामने आने पर 22 मई 2023 को कोरबा के तत्कालीन कलेक्टर ने इस मामले की जांच के लिए अधिकारियों की एक टीम का गठन किया।
टीम में तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रदीप साहू, सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग कोरबा, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के तत्कालीन एसडीओ नरेंद्र सरकार, जिला कोषालय अधिकारी, सब इंजीनियर ऋषिकेश बानिक और सहायक लेखा अधिकारी अशोक देशमुख को शामिल किया गया था। टीम को 15 दिन में जांच पूरी करने के लिए कहा गया था मगर डेढ़ साल गुजर गए लेकिन अभी तक टीम मामले की जांच पूरी नहीं कर सकी।
17 छात्रावासों का किया जाना था मरमत इस बीच बाहर आए दस्तावेजों से एक नए मामले का खुलासा हुआ है। पता चला है कि केंद्र सरकार से मिले राशि को खर्च करने के लिए आदिवासी विकास विभाग ने नगर निगम कोरबा के अधीक्षण अभियंता से तकनीकी स्वीकृति प्राप्त की थी।
यह स्वीकृति 10 फरवरी 2022 को प्राप्त की गई थी। इसके तहत 17 छात्रावासों का मरमत किया जाना था। इसमें नवीन प्री मेट्रिक कन्या छात्रावास मदनपुर और कोरकोमा के अलावा प्री मेट्रिक अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास कुदमुरा, कोरबा, धनगांव, गोढ़ी, कुदुरमाल, पोड़ी उपरोड़ा, कन्या छात्रावास सेन्हा, कोरबी चोटिया, सिंघिया, पसान, हरदीबाजार, अनुसूचित जनजाति कन्या आश्रम हरदीबाजार के अलावा करतला, रंजना और अरदा के कन्या आश्रम शामिल थे। इस कार्य के लिए आदिवासी विकास विभाग के तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर ने प्रत्येक आश्रम के लिए लगभग एक करोड़ 52 लाख रुपए की स्वीकृति प्राप्त की थी। अब इन दस्तावेजों के सामने आने और माया वारियर की गिरतारी होने के बाद कोरबा शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
चर्चा है कि अफसर के इशारे पर ही आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आश्रम और छात्रावासों में विकास कार्यों के लिए प्रदान किए गए राशि से संबंधित फाइलें गायब हुई है। ईडी की गिरत में माया वारियर हाल ही में ईडी ने डीएमएफ घोटाले में माया वारियर को गिरफ्तार किया है। वारियर जेल में बंद है। उनसे ईडी ने इस मसले को लेकर लंबी पूछताछ की है।
डीएमएफ में घोटाले का यह मामला कोरबा से जुड़ा है। पांच छात्रावासों के लिए डीएमएफ से ली गई राशि केंद्र सरकार से प्राप्त पैसे को खर्च करने के लिए माया वारियर ने 17 कार्यों की स्वीकृति प्राप्त करवाया। इस कार्य के लिए डीएमएफ से भी करोड़ों रुपए की राशि निकाली गई, जैसे प्री मेट्रिंक अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास कुदुरमाल के लिए 34 लाख, कन्या छात्रावास कोरबी चोटिया के लिए 34 लाख और इतनी ही राशि कन्या छात्रावास पसान, पोड़ी उपरोड़ा और सिंघिया छात्रावास की मरमत के लिए भी निकाली गई।
जबकि इन्हीं छात्रावासों की मरमत के नाम पर तत्कालीन सहायक आयुक्त ने कुदुरमाल के लिए एक करोड़ 52 लाख 97 हजार, पोड़ी, कोरबी चोटिया, सिंघिया और पसान के लिए भी 1.52 करोड़ '.52 करोड़ रुपए अपने विभाग में लिया। आश्रम और छात्रावासों में रहकर पढ़ाई-लिखाई करने वाले गरीब बच्चों के नाम पर प्रशासनिक अफसर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हैं। गरीब बच्चों को अच्छे भविष्य का सपना दिखाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
दस्तावेजों से आदिवासी विकास विभाग ने दो साल पहले गायब हुई लगभग तीन करोड़ रुपए की फाइल को लेकर बड़ा खुलसा सामने आया है। पता चला है कि जिन कार्यों की फाइल गायब है उन कार्यों के लिए जिला खनिज न्यास मद के साथ-साथ केंद्र सरकार से भी प्राप्त राशि का उपयोग किया गया है।
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