रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को आईएनएस विक्रमादित्य के शॉर्ट रिफिट और ड्राई डॉकिंग (मरम्मत और रखरखाव) के लिए सरकारी कंपनी कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के साथ 1,207 करोड़ रुपये का सौदा किया है। आईएनएस विक्रमादित्य एक विमानवाहक पोत है, जिसे भारत ने 2013 में रूस से 2.3 अरब डॉलर के सौदे के तहत खरीदा था।
इसका नाम बदलकर महान सम्राट विक्रमादित्य के सम्मान में रखा गया था। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि मरम्मत का काम पूरा होने के बाद आईएनएस विक्रमादित्य उन्नत लड़ाकू क्षमता के साथ भारतीय नौसेना के सक्रिय बेड़े में शामिल हो जाएगा।
3500 लोगों को मिलेगा रोजगार
मंत्रालय ने कहा, यह सौदा मरम्मत और ओवरहाल (एमआरओ) हब के रूप में कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें करीब 50 एमएसएमई की भागीदारी होगी और इससे 3,500 से अधिक कर्मियों के लिए रोजगार सृजन होगा। मंत्रालय ने कहा कि यह परियोजना सरकार के आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल के दृष्टिकोण को बढ़ावा देगी। यह प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल को भी मजबूत करेगा।
दुश्मनों का काल है आईएनएस विक्रमादित्य
युद्धपोत आईएनएस विक्रमादित्य को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल होने से पहले 'बाकू' और 'एडमिरल गोर्शकोव' के नाम से जाना जाता था। जिसका वजन 44570 टन है। विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य की ऊंचाई 60 मीटर है। जो 30 नॉट यानी करीब 54 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सकता है। इसकी लंबाई 284 मीटर है जिस पर एक साथ 24 'मिग-29 के' और 10 हेलिकॉप्टर तैनात किए जाएंगे। 'मिग 29 के' रूसी विमान है जो 'मिग 29' का नौसैनिक संस्करण है। आईएनएस विक्रमादित्य 500 किलोमीटर के दायरे में आने वाले अपने दुश्मनों का पता लगाने में माहिर है। इतना ही नहीं, यह किसी भी प्रकार के मिसाइल, तारपीडो या इलेक्ट्रॉनिक हमले को भी मात देने में सक्षम है।
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