दिग्गज तबलावादक जाकिर हुसैन अब इस दुनिया में नहीं हैं। 73 साल की उम्र में उन्होंने रविवार(16 दिसंबर) की रात अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में अंतिम सांस ली। फेंफड़ों की गंभीर बीमारी से जूझ रहे जाकिर के निधन से संगीत जगत स्तब्ध है। जब जाकिर हुसैन का जन्म हुआ तो उन्हें उनकी ही मां मनहूस समझने लगी थे। वहीं, ऐसा वक्त भी आया जब जाकिर उसने ने फिल्मी सितारों को पीछे छोड़ ‘सेक्सी मैन’ का खिताब हासिल किया। आइए, जानते हैं तबला उस्ताद जाकिर हुसैन की जिंदगी से जुड़े दिलचस्प किस्से।
इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी से जूझ रहे थे
जाकिर हुसैन का निधन भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वह लंबे समय से इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी से जूझ रहे थे। अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। पद्म विभूषण से सम्मानित जाकिर ने तबले पर अपनी अद्वितीय शैली से पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया। उनकी उंगलियों का जादू अब भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजता है।
जब मां ने ही मान लिया मनहूस
जाकिर हुसैन ने नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'जाकिर हुसैन- एक संगीतमय जीवन' में खुद अपने बचपन का एक किस्सा साझा किया है। इसमें किताब में लिखा है कि जब जाकिर हुसैना का जन्म हुआ तो उनके पिता दिल की बीमारी से अक्सर तकलीफ में रहने लगे। इसी दौरान घर में आर्थिक तंगी भी शुरू हो गई। जाकिर की मां इन सब चीजों से परेशान रहने लगीं। इसी दौरान किसी ने जाकिर की मां से कह दिया कि बच्चा मनहूस है। उनकी मां के दिमाग में यह बात घर कर गई। उसके बाद मां ने जाकिर को दूध पिलाना बंद कर दिया। परिवार के एक करीबी ने जाकिर को पालने की जिम्मेदारी उठाई।
अमिताभ को पीछे छोड़ जीता ‘सेक्सी मैन’ का खिताब
जाकिर हुसैन का हैंडसम लुक और घुंघराले बाल उनकी पहचान थे। 1994 में भारतीय पत्रिका "जेंटलमैन" ने उन्हें ‘सबसे सेक्सी मैन’ का खिताब दिया। इस प्रतियोगिता में उन्होंने अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गजों को भी पीछे छोड़ दिया। जाकिर ने बताया था कि मैगजीन वालों को यह यकीन नहीं हो रहा था कि वह अमिताभ बच्चन से ज्यादा वोट पाकर जीत सकते हैं। यह उनके व्यक्तित्व की खासियत थी कि वे पारंपरिक और आधुनिक दोनों रूपों में दिलों पर राज करते थे।
पैदा होते ही पिता ने सुनाई तबले की ताल
9 मार्च 1951 का दिन भारतीय संगीत के इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाला था, क्योंकि इस दिन उस्ताद अल्लारक्खा के घर जाकिर हुसैन का जन्म हुआ था। उस्ताद अल्लारक्खा, जो स्वयं एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, ने अपनी संतान को 'ताल' और 'संगीत' के संस्कार दिए। जब जाकिर हुसैन को जन्म लिया, तो उनके पिता ने उसे आशीर्वाद नहीं, बल्कि तबले की तालें दीं। उन्हें कान में तबले की ताल सुनाई। यही तालें उनके जीवन का पहला 'आशीर्वाद' बनीं और उनकी पहचान का हिस्सा बन गईं। जाकिर हुसैन ने तबले को एक वैश्विक पहचान दिलाई।
महज 3 साल की उम्र से शुरू किया तबला बजाना
जाकिर हुसैन ने संगीत के क्षेत्र में अपनी कड़ी मेहनत से एक विशेष स्थान बना लिया। बचपन में जब वह महज 3 साल के थे, तब से उन्होंने तबला बजाना शुरू किया और फिर यह उनकी जीवनशैली बन गई। जाकिर हुसैन ने उस्ताद अल्लारक्खा से शुरुआत की, और उस्ताद लतीफ अहमद खान और उस्ताद विलायत हुसैन खान से भी तबले की तालीम ली। भारत में पहला प्रोफेशन शो 12 साल की उम्र में किया। इस शो के लिए जाकिर हुसैन को 100 रुपए मिले थे, जो उस समय के हिसाब से काफी अच्छी फीस थी।
ग्लोबल म्यूजिक में फ्यूजन संगीत से बनाई जगह
भारत में अपने शास्त्रीय संगीत की मजबूत पकड़ बनाने के बाद, जाकिर हुसैन ने पश्चिमी संगीत के साथ मिलकर फ्यूजन संगीत की शुरुआत की। उनका बैंड 'शक्ति' इस दिशा में एक बड़ा कदम था। जाकिर हुसैन ने मिकी हार्ट, जॉन मैक्लॉफ्लिन जैसे कलाकारों के साथ मिलकर फ्यूजन संगीत में योगदान दिया। उनका उद्देश्य भारतीय और पश्चिमी संगीत को एक साथ लाकर एक नया संगीत अनुभव देना था, और उन्होंने इसे पूरी दुनिया में सफलतापूर्वक पेश किया। जाकिर हुसैन पश्चिमी संगीत की दुनिया में भी सम्मानित हुए और दुनिया भर में भारतीय संगीत को फैलाने में अहम भूमिका निभाई।
कई हिंदी फिल्मों में अभिनय भी किया
संगीत के अलावा, जाकिर हुसैन ने सिनेमा की दुनिया में भी अपनी भूमिका निभाई। 'बावर्ची', 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'हीर-रांझा' जैसी फिल्मों के संगीत में उस्ताद का योगदान अहम रहा। सिर्फ संगीत ही नहीं, जाकिर हुसैन ने फिल्मों में अभिनय भी किया। 'लिटिल बुद्धा' और 'साज' जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने भी दर्शकों का दिल जीता। फिल्म इंडस्ट्री में उनकी सक्रियता ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई। संगीत के साथ-साथ अभिनय में भी उनका योगदान अपूर्व था।
मिला पद्मश्री और पद्मभूषण जैसा सम्मान
जाकिर हुसैन के कार्य और संगीत के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा। 1988 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जब वे महज 37 वर्ष के थे। पद्मश्री मिलने के बाद उस्ताद अल्लारक्खा ने उन्हें अपनी गोदी में लेकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद पंडित रविशंकर ने उन्हें 'उस्ताद' के सम्मान से नवाजा। इसके बाद जाकिर हुसैन की यात्रा कभी नहीं रुकी। उन्होंने 2002 में पद्मभूषण और 2006 में कालिदास सम्मान प्राप्त किया। 2023 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया और 2024 के ग्रैमी अवार्ड्स में तीन पुरस्कार जीतकर उन्होंने इतिहास रच दिया।
साबित किया तबला एक रिदमिक इंस्ट्रूमेंट है
जाकिर हुसैन के जीवन में कई रोचक और प्रेरणादायक किस्से हैं। एक किस्से के अनुसार, जब उनका नाम रखा जा रहा था, तो एक फकीर ने उनके नाम के बारे में सुझाव दिया था, जिसे उनकी मां ने स्वीकार किया। जाकिर हुसैन ने तबला बजाने के अपने अनोखे तरीके से यह साबित किया कि भले ही तबला एक रिदमिक इंस्ट्रूमेंट हो, लेकिन उसमें संगीत की हर बारीकी और मेलोडी होना जरूरी है। उन्होंने यह भी बताया कि उनका पसंदीदा प्रदर्शन उनके पिताजी के साथ था, और पंडित शिवकुमार शर्मा, पंडित बिरजू महाराज, और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे बड़े कलाकारों को भी उन्होंने अपना आदर्श माना।
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