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दुर्ग नगर निगम के इतिहास में पहली बार महापौर पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित
  • Written by - amulybharat.in
  • Last Updated: 8 जनवरी 2025,  09:53 AM IST
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आरक्षण से कई दावेदारों के टुटे सपने और कई ने ली नई अंगड़ाई
दुर्ग। 
दुर्ग नगर निगम चुनाव के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि महापौर का सीट ओबीसी महिला के खाते में गया है। आरक्षण से सामान्य वर्ग को बड़ा झटका लगा है। कई सपने टूट गए और कई सपनो ने नई अंगड़ाई ली है। महापौर पद ओबीसी महिला वर्ग के लिए आरक्षित होने से अब भाजपा व कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों द्वारा ओबीसी महिला प्रत्याशी की तलाश शुरु कर दी गई है। जिससे पिछले कुछ दिनों से ठंडी पड़ी राजनीति में फिर एक बार गर्माहट आ गया है। यदि हम नगर निगम के पिछले 30 साल के इतिहास की बात करें, तो इसके पहले 1994 में दुर्ग नगर निगम के महापौर का सीट ओबीसी के खाते में गया था। तब आरएन वर्मा कांग्रेस से महापौर निर्वाचित हुए थे।  उनका यह निर्वाचन अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से पार्षदों द्वारा किया गया।  इसके बाद 1999 में दुर्ग महापौर का सीट सामान्य महिला वर्ग के लिए आरक्षित हुआ। तब सरोज पांडेय का धूमकेतु दुर्ग की राजनीति में डेढ़ दशक के लिए छा गया। इस चुनाव में राधेश्याम शर्मा की धर्मपत्नी चंदा देवी शर्मा कांग्रेस प्रत्याशी थी। 2004 में छत्तीसगढ़ नया राज्य बन चुका था। तब यह सीट अनारक्षित रहा और सरोज पांडेय बड़ी जीत के साथ लगातार दूसरी बार महापौर चुनी गई।  2009 के आरक्षण में दुर्ग महापौर पद ओबीसी के खाते में गया। तब भाजपा के डॉ. शिवकुमार तमेर ने अपने निकटतम प्रत्याशी राजेन्द्र साहू को करीब 4 सौ वोट से शिकस्त दी थी। कांग्रेस प्रत्याशी शंकरलाल ताम्रकार इस चुनाव में तीसरे स्थान पर पिछड़ गए।  2014 में दुर्ग नगर निगम का महापौर सीट अनारक्षित महिला के लिए ॥िक्स हुआ। कांग्रेस की नीलू ठाकुर व भाजपा से चंद्रिका चंद्राकर आमने सामने हुए। सरोज पांडे की पसंद चंद्रिका चन्द्राकर तब महापौर बनी थी। कांग्रेस प्रत्याशी नीलू ठाकुर को कम मतों के अंतराल से पराजय का सामना करना पड़ा था।  2019 में यह सीट फिर से अनारक्षित घोषित हुआ। कांग्रेस के धीरज बाकलीवाल महापौर निर्वाचित हुए। उनका चुनाव अप्रत्यक्ष चुनावी प्रणाली से किया गया था। दुर्ग नगर निगम के इतिहास में यह पहला अवसर है जब दुर्ग का महापौर सीट पिछड़ा वर्ग महिला के लिए सुरक्षित हुआ है।  आरक्षण ने सवर्ण तबके के पूर्व महापौर धीरज बाकलीवाल, भाजपा नेता चतुर्भुज राठी, छग चेम्बर ऑफ कॉमर्स के प्रदेश मंत्री अशोक राठी, डॉ. मानसी गुलाटी समेत कई नेताओं के सपनो पर कुठाराघात किया है।  वहीं ओबीसी वर्ग के कई नेता आशा भरी नजरों से अपनी पत्नी की ओर देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस से पूर्व महापौर आरएन वर्मा की पार्षद पत्नि सत्यवती वर्मा,पूर्व सभापति राजेश यादव की पत्नि, कांग्रेस नेता पोषण साहू की पार्षद पत्नि प्रेमलता साहू,पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्राकर, शहर जिला महिला कांग्रेस की अध्यक्ष कन्या ढीमर के अलावा कांग्रेस से अन्य महिलाओं के नाम दावेदारों की फेहरिस्त में है। इसी प्रकार भाजपा से पूर्व महापौर चंद्रिका चंद्राकर का दावा स्वभाविक है। इसके अलावा भाजपा नेत्री अलका बाघमार,जिला भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष दिव्या कलिहारी, पूूर्व सभापति दिनेश देवांगन की पार्षद पत्नि लीना देवांगन, नगर निगम में पूर्व नेता प्रतिपक्ष  अजय वर्मा की पत्नि, पचरीपारा वार्ड के भाजपा पार्षद ओमप्रकाश सेन की पत्नि ममता सेन, पार्षद नरेन्द्र बंजारे की पत्नि भारती बंजारे (पूर्व पार्षद), गुलाब वर्मा की पार्षद पत्नि पुष्पा वर्मा समेत अन्य ओबीसी वर्ग के शहरी नेता अपनी धर्मपत्नी को चुनाव में उतारने विचार कर सकते हैं।

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